• Latest Posts

    दोहराने से कोई सत्य नहीं होता है - ओशो

     

    No-truth-comes-by-repetition-Osho


    दोहराने से कोई सत्य नहीं होता है - ओशो 


    मैंने सुना है, एक पत्रकार मर गया और मरते से स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंच गया। जर्नलिस्ट, अखबार वाला। अब अखबार वाला था, उसने कहा कि सीधे स्वर्ग में मुझे जगह मिलनी चाहिए। और यहां कोई मिनिस्टर या कहीं भी दरवाजा खटखटाए तो दरवाजा खुलता था। उसने कहा, भगवान भी क्यों, डरता होगा जरूर। अखबार वाले से कौन नहीं डरता । जाकर उसने सीधा दरवाजा खटखटाया। द्वारपाल ने बाहर झांक कर देखा । उसने कहा, दरवाजा खोलो, मैं एक बड़े अखबार का रिपोर्टर; और मैं मर गया हूं, मैं स्वर्ग में रहना चाहता हूं।

    उस द्वारपाल ने कहा, माफ करिए! पहली तो बात तो यह है कि स्वर्ग में कोई घटना ही नहीं घटती, न्यूज ही नहीं घटता, क्योंकि न्यूज के लिए भी तो उपद्रव आदमी चाहिए – राजनीतिज्ञ चाहिए, गुंडे चाहिए, बदमाश चाहिए। यहां कोई आता ही नहीं इस तरह के सब लोग। हालांकि जमीन पर जो भी मरता है, वे सभी स्वर्गीय लिखे जाते हैं। सब स्वर्ग चले जाते हैं, ऐसा हम मानते हैं। जाता मुश्किल से कोई कभी होगा।

    उस द्वारपाल ने कहा, यहां कोई घटना ही नहीं घटती । अखबार कहां चले ? और यहां का एक निश्चित कोटा है। दस अखबार वालों को हमने जगह दी रखी, लेकिन वह भी बेकार है । कोई काम ही नहीं है । और अखबार भी निकालो तो कोई पढ़ने को राजी नहीं होता। इसलिए वह ठप्प ही पड़ा है काम। अगर तुम्हें जाना ही है तो नर्क चले जाओ, वहां बहुत अखबार चलते हैं। बड़े अखबार चलते हैं, बहुत सर्कुलेशन हैं अखबारों का। क्योंकि घटनाएं भी खूब घटती हैं, घटनाएं ही घटनाएं हैं वहां तो; जहां देखो वहीं घटना घट रही।

    पर उसने कहा कि मुझे तो स्वर्ग रहना है। आप एक कर सकते हैं तरकीब, मुझे चौबीस घंटे के लिए भीतर ले लें। मैं दस अखबार वालों में से एक को राजी कर लूंगा कि वह नरक में चला जाए। तो फिर तो जगह खाली होती है मुझे।

    उस द्वारपाल ने कहा, आप आ जाएं, चौबीस घंटे आप कोशिश कर लें । वह अखबार वाला भीतर गया। जो भी आदमी उसे मिला, उसने कहा, सुना तुमने, नर्क में एक बहुत नया अखबार निकलने वाला है। उसके लिए एक बड़े संपादक की, चीफ एडीटर की जरूरत है। मोटर भी मिलेगी, बंगला भी मिलेगा, सब इंतजाम है, बड़ा तनख्वाह भी है। उसने पूरे स्वर्ग में खबर फैला दी।

    शाम को वह वापस द्वारपाल के पास आया। उसने पूछा कि कहो, कोई गया?

    द्वारपाल ने दोनों हाथ रोक कर उससे कहा कि ठहरो! वे दसों चले गए और अब तुम नहीं जा सकते, क्योंकि यहां हम तो बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे। दस का कोटा है, वे दसों ही भाग गए हैं। वे कहते हैं, हमको नर्क जाना है। सब चले गए। लेकिन उस अखबार वाले ने कहा, रास्ता हटाओ, मैं भी जाऊंगा।

    उसने कहा, तुम कैसे पागल उसने कहा, कौन जाने, बात सच भी हो सकती है कि अखबार वहां निकल रहा हो। क्योंकि मैंने जिससे भी सुना है दिन में, सभी यही कह रहे हैं कि अखबार निकलने वाला है। पूरे स्वर्ग में एक ही चर्चा है। कौन जाने! उस द्वारपाल ने कहा, पागल, सुबह तूने ही यह झूठ शुरू किया था। उसने कहा, सुबह तो बहुत देर हो गई, बात सच भी हो सकती है। मैं लेकिन यहां नहीं रहना चाहता । झूठ हो तो भी कोई हर्जा नहीं। जब दस आदमियों ने मान लिया, तो बात में कुछ न कुछ जान होनी चाहिए।

    हम भी भूल जाते हैं कि हमने कब झूठ स्वीकार किया था खुद। और अगर बोलते ही चले जाएं तो आखिर में पता ही नहीं रहेगा कि यह झूठ था । दोहराने से कोई सत्य नहीं होता है। हम किताबें पढ़ लेते हैं— ईश्वर के संबंध में, ब्रह्म के संबंध में, आत्मा के संबंध में बातें सीख लेते हैं, फिर उनको दोहराने लगते हैं और दोहराते - दोहराते मर जाते हैं, हम कुछ जान नहीं पाते।

     - ओशो 

    No comments