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    जहाँ तक परमात्मा और सत्य की बात है, हम अंधे हैं - ओशो

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    जहाँ तक परमात्मा और सत्य की बात है, हम अंधे हैं  - ओशो 


    पहली बात जाननी जरूरी है कि हम अंधे हैं और दूसरी बात जाननी जरूरी है कि हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। जहां तक ईश्वर का, सत्य का संबंध है, हमें कुछ पता नहीं है, कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। यह पहली सच्चाई होगी, जिसे हम स्वीकार कर लें, तो फिर आगे बढ़ा जा सकता है। तब हम पूछ सकते हैं कि यह आंख कैसे ठीक हो कि हम जान सकें। लेकिन जिसने मान लिया, वह यह पूछता ही नहीं कि हम जान सकें। वह तो यह मान लेता है कि जान लिया। वह तो विश्वास को धीरे-धीरे, धीरे-धीरे ज्ञान बना लेता है, उसे पता ही नहीं चलता कि मैंने गीता में ऐसा पढ़ा था। कब वह समझने लगता है कि ऐसा मैं जानता हूं। मैं देखता हूं, लोग बैठे हैं— धार्मिक लोग — आंख बंद करके सोच रहे हैं: अहं ब्रह्मास्मि; मैं ब्रह्म हूं, में ब्रह्म हूं, मैं ब्रह्म हूं। किसी किताब में पढ़ लिया है। अब दोहरा रहे हैं कि मैं ब्रह्म हूं। अब दोहराते रहिए।

    क्या दोहराने से पता चल जाएगा कि आप ब्रह्म हैं? कैसे पता चल जाएगा? जब पहली बार आपने दोहराया कि मैं ब्रह्म हूं, तब आपको पता नहीं था। जब आपने दूसरी बार दोहराया, तब भी आपको पता नहीं था। जब आपने तीसरी बार दोहराया, तब भी आपको पता नहीं था । और अगर पता ही हो गया था तो चौथी बार दोहराया किसलिए? तो चौथी बार दोहराया तब भी पता नहीं था । हजार बार, लाख बार, करोड़ बार दोहराइए पता कैसे हो जाएगा ?

    रिपीटीशन नालेज बन जाता है ? दोहराने से ज्ञान पैदा हो जाता है? तब तो बहुत ही सस्ता मामला है, तब तो बड़ा सस्ता मामला है। तब तो हिटलर ने ठीक लिखा अपनी आत्मकथा में। उसने लिखा है कि दुनिया में सफेद झूठ जैसी कोई चीज नहीं होती। जिस झूठ को बार-बार दोहराओ, वही सत्य हो जाता है। तब तो फिर हिटलर परम ज्ञानी है।

    और मजे की बात यह है कि हम हिटलर को कभी ज्ञानी न कहेंगे, लेकिन हम यही कर रहे हैं ज्ञान के लिए। हां, यह बात जरूर सच है कि अगर असत्य को भी बार-बार दोहराया जाए, तो हम धीरे-धीरे यह भूल जाते हैं कि यह असत्य है। दूसरा नहीं हम खुद भूल जाते हैं। अगर आप बचपन से एक असत्य को दोहराते रहें, दोहराते रहें, तो बुढ़ापे तक याद रखना जरा मुश्किल हो जाएगा कि यह असत्य था और मैंने जब पहली बार दोहराया था तो असत्य था, मुझे पता नहीं था। यह भूल जाएंगे आप, निरंतर दोहराने से सिर्फ भूल सकते हैं, लेकिन ज्ञान नहीं हो सकता। सिर्फ इतना भूल सकते हैं।

     - ओशो 

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