दूसरे का ज्ञान मेरे अज्ञान को मिटा नहीं सकता - ओशो
दूसरे का ज्ञान मेरे अज्ञान को मिटा नहीं सकता - ओशो
डी. एच. लारेंस एक बगीचे में घूम रहा था। एक अदभुत आदमी था। एक छोटा बच्चा उसके साथ घूम रहा है और वह लारेंस से पूछता है, जैसा कि छोटे बच्चे अक्सर सवाल उठा देते हैं, जिनका कि बूढ़े भी उत्तर नहीं दे सकते। लेकिन इतने हिम्मतवर बूढ़े कम होते हैं, जो मान ले बच्चों के सामने इस बात को कि मुझे उत्तर पता नहीं। इसी तरह के कमजोर बूढ़ों ने दुनिया को परेशानी में डाल रखा। बच्चे ने प्रश्न उठा दिया एक सीधा सा । वृक्षों को देखा है और हाथ उठा कर लारेंस से पूछा, व्हाई दि ट्रीज आर ग्रीन ? वृक्ष हरे क्यों हैं ? लारेंस ने कहा, दि ट्रीज आर ग्रीन, बिकाज दे आर ग्रीन ! वृक्ष हरे हैं, क्योंकि वृक्ष हरे हैं! उस बच्चे ने कहा यह भी कोई उत्तर हुआ । यह कोई उत्तर है। हम पूछते हैं वृक्ष हरे क्यों हैं? आप कहते हैं, हरे हैं, क्योंकि हरे हैं! यह कोई उत्तर हुआ। लारेंस ने कहा कि उत्तर का मतलब सिर्फ इतना है कि मुझे पता नहीं है और मैं झूठ नहीं बोल सकता हूं।
इस आदमी का भाव देखते हैं, वह कहता है, मुझे पता नहीं।
यह धार्मिक आदमी का पहला लक्षण है कि वह साफ होगा इस बात में कि मुझे क्या पता है और क्या पता नहीं है। क्या आप साफ हैं? आपने कभी लेखा-जोखा किया है कि मुझे क्या पता है और क्या पता नहीं है?
आप बहुत हैरान हो जाएंगे। शायद ही, जीवन का कोई परम सत्य पता हो। लेकिन जिन बातों का हमें बिलकुल पता नहीं है, हम बहुत जोर से टेबल ठोंक- ठोंक कर कहते हैं कि हमें पक्का पता है । न केवल टेबल ठोंकते हैं, एक-दूसरे की छाती में छुरा भी भोंकते हैं। कि मुझे जो पता है वह ज्यादा ठीक है, तुम्हें जो पता है वह गलत है।
आश्चर्य! जिन सत्यों के संबंध में हमें कोई भी बोध नहीं है, उनके संबंध में हम कितने फेनेटिक, कितने पागल, कितने आक्रमक, कितने अग्रेसिव | समझ के बाहर है यह बात, लेकिन यही बात हमारी स्थिति बनी है। इस स्थिति को तोड़ना जरूरी है।
तो मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा, कभी एकांत क्षणों में इस पर सोचना कि धर्म के संबंध में मुझे क्या पता है ? निश्चित ही गीता के सूत्र आपको याद होंगे, कुरान की आयतें भी याद हो सकती हैं, बाइबिल के वचन भी कंठस्थ हो सकते हैं, लेकिन ध्यान रखना, वह आपका ज्ञान नहीं है। गीता में जो है, वह कृष्ण का ज्ञान रहा होगा, आप उसे पढ़ कर अपना ज्ञान नहीं बना सकते हैं। बारोड, उधार लिया हुआ ज्ञान अज्ञान से बदतर है। क्योंकि अज्ञान कम से कम अपना तो होता है। इतना तो है कि मेरा है। कम से कम प्रामाणिक, आथेंटिक तो होता है कि मेरा है। ज्ञान उधार है तब और अज्ञान हमारा।
ध्यान रहे, मेरे अज्ञान को, मैं सारी दुनिया के ज्ञान को भी इकट्ठा कर लूं, तो भी नहीं मिटा सकता। क्योंकि अज्ञान मेरा है और ज्ञान दूसरे का है। दूसरे का ज्ञान मेरे अज्ञान को मिटा नहीं सकता है। कैसे मिटा सकता है? दोनों कहीं कटते ही नहीं। दोनों कहीं एक-दूसरे को स्पर्श भी नहीं करते। दूसरे का ज्ञान, अज्ञान से भी खतरनाक हो सकता है।
- ओशो
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