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    सिखाया हुआ ज्ञान नहीं है, सिखाया हुआ तोते की तरह रटन है - ओशो

     

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    सिखाया हुआ ज्ञान नहीं है, सिखाया हुआ तोते की तरह रटन है - ओशो 


    मेरे एक मित्र रूस गए थे। एक स्कूल में देखने गए थे। एक स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों से उन्होंने पूछा, ईश्वर है ? तो एक छोटे से बच्चे ने कहा, और सारे बच्चे हंसने लगे कि आप भी कैसी बातें पूछते हैं? एब्सर्ड ! बेमानी! एक छोटे से बच्चे ने कहा, गॉड वाज, ईश्वर हुआ करता था, उन्नीस सौ सत्रह के पहले, अब कहां! जब दुनिया में अज्ञान था, तब ईश्वर था, अब कहां है।

    रूस में अब कोई ईश्वर नहीं है। हमको हंसी आएगी, लेकिन हम भी उन बच्चों से भिन्न नहीं हैं । भिन्नता इस बात में है सिर्फ कि उन्हें सिखाया गया है कि ईश्वर नहीं है, हमें सिखाया गया कि ईश्वर है । लेकिन दोनों थोथी बातें हैं, क्योंकि दोनों सिखाई गई हैं। न वे जानते हैं कि ईश्वर नहीं है, न हम जानते हैं कि ईश्वर है । हमारी हालत बिलकुल एक जैसी है। उन्हें लोग नास्तिक कहेंगे, हमें लोग आस्तिक कहेंगे। फिर आस्तिकों में भी हजार तरह के भेद हैं। हिंदू कुछ और सीख लेता है, मुसलमान कुछ और सीख लेता है, जैन कुछ और सीख लेता है, बौद्ध कुछ और सीख लेता है। जो भी हमें सीखा दिया है, हम वही सीख लेते हैं।

    तो फिर और कोई ज्ञान नहीं; या कि जो सीखा दिया गया वही ज्ञान है ? अगर सिखाया हुआ ज्ञान है, तब हो सकता है एक दिन दुनिया में ईश्वर न रह जाए, क्योंकि सारी दुनिया को सिखाया जा सकता है कि ईश्वर नहीं है। सिखाया हुआ ज्ञान नहीं है। सिखाया हुआ तोते की तरह रटन है । और इस तोते की तरह रटन करने वाले लोगों को हम आस्तिक समझ लेते हैं, इससे बड़ी भ्रांति हो जाती है।

     - ओशो 

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