नादब्रह्म ध्यान - ओशो
नादब्रह्म ध्यान - ओशो
तिब्बत देश की यह बहुत पुरानी विधि है। बड़े भोर में, दो और चार बजे के बीच उठकर, साधक इस विधि का अभ्यास करते थे और फिर सो जाते थे। ओशो का कहना है कि हम लोग नादब्रह्म ध्यान सोने के पूर्व मध्य रात्रि में करें या फिर प्रातःकाल के समय करें।
ध्यान रहे कि रात के अतिरिक्त जब भी इसे किया जाए, तब अंत में पंद्रह मिनट का विश्राम अनिवार्य है।
नादब्रह्म ध्यान, सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों ढंग से किया जा सकता है। पेट भरे रहने पर यह ध्यान नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब आंतरिक नाद गहरा नहीं जाएगा। यदि इसे अकेले करें तो कान में रुई या डाट लगाना उपयोगी होगा।
यह ध्यान तीन चरणों का है। पहला चरण तीस मिनट का है, और दूसरा तथा तीसरा पंद्रह-पंद्रह मिनट का। आंखें पूरे समय बंद रहेंगी।
पहला चरण
आंखें बंद कर सुखपूर्वक बैठ जाएं। अब मुंह को बंद रखते हुए, भीतर ही भीतर, भंवरे की गुंजार की भांति हूं ऊं ऊं ऊं ऊं...का नाद शुरू करें। यह नाद इतने जोर से शुरू करें कि इसका कंपन आपको पूरे शरीर में अनुभव हो। नाद इतना ऊंचा हो कि आसपास के लोग इसे सुन सकें। नाद के स्वर-मान में आप फिर बदलाहट भी कर सकते हैं। अपने ढंग से गुंजार करें। और श्वास भीतर ले जाएं।
अगर शरीर हिलना चाहे तो उसे हिलने दें, लेकिन गति अत्यंत धीमी और प्रसादपूर्ण हो। नाद करते हुए भाव करें कि आपका शरीर बांस की खाली पोंगरी है—जो सिर्फ गुंजार के कंपनों से भरी है। कुछ समय के बाद वह बिंदु आएगा, जब आप श्रोता भर रहेंगे और नाद आप ही आप गूंजता रहेगा।
यह नाद मस्तिष्क के एक-एक तंतु को शुद्ध कर उन्हें सक्रिय करता है तथा प्रभु-चिकित्सा में विशेष लाभकारी है। इसे तीस मिनट से अधिक तो कर सकते हैं, लेकिन कम नहीं।
दूसरा चरण
अब दोनों हाथों को अपने सामने नाभि के पास रखें और हथेलियों को आकाशोन्मुख ऊपर की ओर। अब दोनों हाथों को आगे की तरफ ले जाते हुए चक्राकार घुमाएं। दायां हाथ दायीं तरफ को जाएगा और बायां हाथ बायीं तरफ को। और तब वर्तुल पूरे करते हुए दोनों हाथों को अपने सामने उसी स्थान पर वापस ले आएं।
ध्यान रहे कि जितना हो सके हाथों के घूमने की गति धीमी से धीमी रखनी है। वह इतनी धीमी रहे कि लगे कि जैसे गति ही नहीं हो रही है।
शरीर हिलना चाहे तो उसे हिलने दें, लेकिन उसकी गति भी बहुत धीमी, मृदु और प्रसादपूर्ण हो। और भाव करें कि ऊर्जा आप से बाहर जा रही है। यह क्रम साढ़े सात मिनट तक चलेगा।
इसके बाद हथेलियों को नीचे की ओर, जमीन की ओर उलट दें और हाथों को विपरीत दिशा में घुमाना शुरू करें। पहले तो सामने रखे हुए हाथों को अपने शरीर की तरफ आने दें और फिर उसी प्रकार दाएं हाथ को दायीं तरफ तथाबाएं हाथ को बायीं तरफ वर्तुलाकार गति करने दें- जब तक कि वे वापस उसी स्थान पर सामने न आ जाएं। ___ घूमने के लिए हाथों को अपने आप न छोड़ें, बल्कि इसी वर्तुलाकार ढांचे में धीरे-धीरे उन्हें घुमाते रहें। और भाव करें कि आप ऊर्जा ग्रहण कर रहे हैं, ऊर्जा आपकी ओर आ रही है। यह क्रम भी साढ़े सात मिनट तक चलेगा।
तीसरा चरण
बिलकुल शांत और स्थिर बैठे रहें—साक्षी होकर।
ओशो ने दंपतियों के लिए नादब्रह्म ध्यान की एक अन्य विधि भी बतायी है, जो इस प्रकार है
पहले कमरे को ठीक से अंधेरा कर मोमबत्ती जला लें। विशेष सुगंध वाली अगरबत्ती ही जलाएं, जिसे सिर्फ इस ध्यान के समय ही हमेशा उपयोग में लाएं। फिर दोनों अपना शरीर एक चादर से ढंक लें। बेहतर यही होगा कि दोनों के शरीर पर कोई और वस्त्र न हो। अब एक-दूसरे का तिरछे ढंग से हाथ पकड़ आमने-सामने बैठ जाएं। अब आंखें बंद कर लें और कम से कम तीस मिनट तक लगातार भंवरे की भांति हूं ऊ ऊ ऊ ऊं...का गुंजार करते रहें। गुंजार दोनों एक साथ करें। एक या दो मिनट के बाद दोनों की श्वसन क्रिया और गुंजार एक-दूसरे में घुलमिल जाएंगी और दो ऊर्जाओं के मिलन की दोनों को प्रतीति होगी।
रात्रि, सोने के पूर्व इसे करें।
- ओशो
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