• Latest Posts

    परमात्मा की पहचान निःशब्द में, मौन में, सायलेंस में ही संभव है - ओशो

     

    The-identity-of-God-is-possible-only-in-silence-in-silence-Osho


    परमात्मा की पहचान निःशब्द में, मौन में, सायलेंस में ही संभव है - ओशो 


    हम सब जिंदा हैं, लेकिन हमने जिंदगी में एक भी क्षण न जाना होगा जब किसी न किसी रूप में हम नहीं बोल रहे हैं या बाहर या भीतर। हमने न बोलने का, सायलेंस का, मौन का एक भी क्षण नहीं जाना है। हमने बहुत जन्म देखे होंगे, लेकिन वे सब जन्म शब्दों के जन्म हैं। और हमने इस जिंदगी में भी बहुत दिन व्यतीत किए हैं, लेकिन वे सब शब्द की यात्रा के दिन हैं। जब हम बोलते हैं; नहीं बोलते तो सोचते हैं; नहीं सोचते तो सपना देखते हैं— लेकिन शब्द बोलना किसी न किसी तल पर जारी रहता है । और जिस आदमी के शब्द अभी जारी है, वह परमात्मा को नहीं पहचान पाएगा। क्योंकि उसकी पहचान निःशब्द में, मौन में, सायलेंस में ही संभव है।

    इसलिए परमात्मा के संबंध में सब कहा गया झूठ हो जाता है। क्योंकि उसे जब जाना जाता है तब शब्द नहीं होते, विचार नहीं होते; थॉट नहीं होता, थिंकिंग नहीं होती। सब समाप्त हो जाता है, तब उसका अनुभव होता है । और जब हम उसे कहने जाते हैं, बताने जाते हैं, तब शब्द वापस उपयोग करने पड़ते हैं।

    जिसे निःशब्द में जाना है, उसे शब्द में नहीं कहा जा सकता। जिसे मौन में जाना है, उसे वाणी कैसे प्रकट करेगी? और जिसे चुप्पी में, गहन चुप्पी में अनुभव किया है, उसे बोल कर कैसे बताया जा सकता है ? इसीलिए नास्तिक जीत जाते हैं, अगर आस्तिक से विवाद करें । आस्तिक की हार निश्चित है । आस्तिक नास्तिक से कभी भी जीत नहीं सकता है । न जीतने का कारण है, नास्तिक इनकार करता है, इनकार शब्दों में हो सकता है। आस्तिक स्वीकार करता है, स्वीकृति को शब्दों में बताना कठिन है। इसलिए आस्तिक निरंतर मुश्किल में रहा है।

    लेकिन आप अपने को आस्तिक मत समझ लेना, क्योंकि आस्तिक पृथ्वी पर मुश्किल से कभी कोई पैदा होता है। पृथ्वी पर दो तरह के नास्तिक हैं: एक वे जो जानते हैं कि नास्तिक हैं और एक वे जो जानते नहीं कि नास्तिक हैं और अपने को आस्तिक समझते हैं। पृथ्वी पर आस्तिक बहुत मुश्किल से पैदा होता है, क्योंकि आस्तिक तभी होता है, जब वह परमात्मा को जान ले। उसके पहले कोई आस्तिक नहीं हो सकता। क्योंकि जिसे हमने जाना नहीं, उस पर आस्था कैसे आ सकती है? जिसे हम जानें, उसी पर आस्था आ सकती है।

    लेकिन सारी दुनिया में बड़ी अजीब बातें सिखाई जाती हैं। आदमी को पता ही नहीं परमात्मा का और हम उसे आस्था सीखा देते हैं, बिलीफ सीखा देते हैं, उसे कहते हैं, मानो ! एक बच्चा पैदा हुआ, उसे हम कहते हैं कि मानो परमात्मा है! ध्यान रहे, जिस चीज को भी कोई मान लेगा, वह फिर उसे जान नहीं सकता। मानना बहुत खतरनाक है, बिलीफ बहुत खतरनाक है।

     - ओशो 

    No comments