नटराज ध्यान - ओशो
नटराज ध्यान - ओशो
नटराज ध्यान के संबंध में बोलते हुए ओशो ने कहा है— परमात्मा को हमने नटराज की भांति सोचा है। हमने शिव की एक प्रतिमा भी बनाई है नटराज के रूप में। परमात्मा नर्तक की भांति है, एक कवि या चित्रकार की भांति नहीं। एक कविता या पेंटिंग बनकर कवि से, पेंटर से अलग हो जाती है; लेकिन नृत्य को नर्तक से अलग नहीं किया जा सकता। उनका अस्तित्व एक साथ है; कहना चाहिए एक है।
नृत्य और नर्तक एक हैं। नृत्य के रुकते ही नर्तक भी विदा हो जाता है। संपूर्ण अस्तित्व ही परमात्मा का नृत्य है; अणु-परमाणु नृत्य में लीन है। परमात्म-ऊर्जा अनंत-अनंत रूपों में, अनंत-अनंत भाव-भंगिमाओं में नृत्य कर रही है।
नटराज-नृत्य एक संपूर्ण ध्यान है। नृत्य में डूबकर व्यक्ति विसर्जित हो जाता है और अस्तित्व का नृत्य ही शेष रह जाता है।
हृदयपूर्वक पागल होकर नाचने में जीवन रूपांतरण की कुंजी है।
नटराज ध्यान पैंसठ मिनट का है और इसके तीन चरण हैं। पहला चरण चालीस, दूसरा चरण बीस और तीसरा चरण पांच मिनट का है।
जिस समय आप चाहें, इसे कर सकते हैं।
पहला चरण
संगीत की लय के साथ-साथ नाचें...और नाचे...बस नाचें, पूरे अचेतन को उभरकर नृत्य में प्रवेश करने दें। ऐसे नाचें कि नृत्य के वशीभूत हो जाएं। कोई योजना न करें, और न ही नृत्य को नियंत्रित करें। नृत्य में साक्षी को, द्रष्टा को, बोध को सबको भूल जाएं। नृत्य में पूरी तरह डूब जाएं, खो जाएं, समा जाएं—बस, नृत्य ही हो जाएं।
काम केंद्र से शुरू होकर ऊर्जा ऊपर की ओर गति करेगी।
दूसरा चरण
वाद्य-संगीत के बंद होते ही नाचना रोक दें और लेट जाएं। अब नृत्य एवं संगीत से पैदा हुई सिहरन को अपने सूक्ष्म तलों तक प्रवेश करने दें।
तीसरा चरण
खड़े हो जाएं। पुनः पांच मिनट नाचकर उत्सव मनाएं—प्रमुदित हों।
- ओशो
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