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    तो बैठें और शून्य हो जाएं, और जो होता है होने दें - ओशो

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    तो बैठें और शून्य हो जाएं, और जो होता है होने दें - ओशो 


    हां, अमेरिका में एक नया, चित्रकारों का एक मोमेंट है, उसको वे कहते हैं हैपनिंग | चित्रों की प्रदर्शनी करते हैं, अगर सौ चित्र प्रदर्शनी में लगाए गए हैं, तो दर्शक देखने आएंगे। तो हर चित्र के बगल में एक खाली कैनवस भी लगाते हैं, और खाली कैनवस के नीचे रंग व ब्रश भी रखे रहते हैं । फिर दर्शक देख रहे हैं, देख रहे हैं, देख रहे हैं और किसी दर्शक को एकदम लगा और उसने ब्रश उठाया, और उस खाली कैनवस पर कुछ पेंट किया, पेंट किया। फर्क यही है कि अपनी तरफ से पेंट मत करना, क्योंकि अपनी तरफ से करोगे तो वह बेकार हो गया। होने देना, उस सिचुएशन में अगर ऐसा पकड़ जाए और होने लगे पेंट तो होने देना, रोकना भी मत । तो उसको वे हैपनिंग पेंटिंग कहते हैं, वह किसी ने बनाई नहीं उस पर किसी का नाम नहीं होता फिर, वह घटी, वह घट गई।

    ईसाइयों में एक साधकों का संप्रदाय है क्वेकर । क्वेकरों की जो बैठक होती है, उस बैठक में कोई बोलने के लिए निमंत्रित नहीं होता, कोई बोलने वाला नहीं होता, बैठक भर होती है, इकट्ठे होते हैं, बैठ जाते हैं। नियम यह है कि अगर किसी को कभी बोलने जैसा हो जाए, तो वह खड़ा हो जाए और बोलने लगे, बाकि लोग सुनेंगे बिना कोई धन्यवाद दिए, फिर विदा हो जाएंगे।

    कई बार ऐसा होता है कि महीनों बीत जाते हैं कोई नहीं बोलता । क्योंकि नियम का खयाल यह है, अपनी तरफ से बोलना ही मत, अगर ऐसा जरा भी लगे कि मैं बोल रहा हूं, फिर बोलना ही मत । क्योंकि वह पाप हो गया। हां, ऐसा लगे कि परमात्मा बोल रहा है, मैं हूं नहीं, ऐसा किसी दिन लगे तो खड़े हो जाना, बोल देना, हम सुन लेंगे और विदा हो जाएंगे। तो कई दफा महीनों बीत जाते हैं उनकी बैठक में बोलना नहीं होता। लोग आकर बैठते हैं— चुपचाप बैठे रहते हैं, बैठे रहते हैं, बैठे रहते हैं, फिर विदा हो जाते हैं। लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई खड़ा हो जाता है और बोलता है, वे जो रिकार्डस हैं उनके बोलने के वे बड़े अदभुत हैं। क्योंकि तब वह आदमी की भाषा नहीं होती, वह आदमी की बात ही नहीं, वह हैपनिंग हो रही है, उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

    तो बैठें और शून्य हो जाएं, और जो होता है होने दें। बाहर सड़क पर कुत्ते की आवाज होगी, हार्न बजेगा, बच्चे चिल्लाएंगे, सड़क चलेगी। आवाजें आएंगी आने दें, विचार चलेंगे आने दें, मन में भाव उठेंगे उठने दें, जो भी हो रहा है होने दें। आप कर्ता न रह जाएं आप बस साक्षी रह जाएं, देखते रहें, यह हो रहा है, यह हो रहा है, यह हो रहा है। यह हो रहा है देखते रहें, देखते रहें, देखते रहें इसी देखने में वह क्षण आ जाता है जब अचानक आप पाते हैं कि कुछ भी नहीं हो रहा, सब ठहरा हुआ है।

    और तब वह आपका लाया हुआ क्षण नहीं है, और तब आप एकदम समर्पित हो गए हैं और आप उस मंदिर पर पहुंच गए, जिसको खोज कर आप कभी भी नहीं पहुंच सकते थे। और वह मंदिर आ गया सामने और द्वार खुल गया है। और ये परमात्मा के लिए लाखों बार सोचा था कि मिलना है, मिलना है, मिलना है, नहीं मिला था, उसे बिना सोचे वह सामने खड़ा है, वह मिल गया है। और जिस आनंद के लिए लाखों उपाय किए थे और कभी उसकी एक बूंद न गिरी थी, आज उसकी वर्षा हो रही है और बंद नहीं होती । और जिस संगीत के लिए प्राण प्यासे थे वह अब चारों तरफ बज रहा है और बंद नहीं होता।

    यह घटना घटती है, यह आपके घटाए नहीं घट सकती है। इसलिए आप अपने को हटा लेना और घटना को घटने देना । अपने को हटा लेना, अपने को बीच में खड़ा मत करना । आप हट ही जाना और घटना को घटने देना। बस इसको ही मैं भक्त का भाव कहता हूं या साधक की चेष्टा कहता हूं। कहना नहीं चाहिए क्योंकि चेष्टा नहीं है यह, लेकिन भाषा में कोई और उपाय नहीं है।

     - ओशो 

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