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    ध्यान के प्रयोग में आदमी बुरे-भले का भी विचार नहीं करता - ओशो

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    ध्यान के प्रयोग में आदमी बुरे-भले का भी विचार नहीं करता - ओशो 


    ध्यान के प्रयोग में आदमी बुरे-भले का भी विचार नहीं करता, वह विचार ही नहीं करता, जो आता है चुपचाप देखता रहता है। जैसे सड़क पर खड़ा हुआ एक आदमी देख रहा है, लोग गुजर रहे हैं, अच्छे भी बुरे भी, रास्ता चल रहा है, वह चुपचाप खड़ा देख रहा है। आधा घंटे के लिए चुपचाप खड़े हो जाएं और देखते रहें। जो भी हो रहा है होने दें, रोके जरा भी नहीं, क्योंकि रोकना आपका कृत्य बन जाता है और आप काम में लग गए और करे भी न, राम-राम भी न करें क्योंकि वह भी आप का कृत्य बन जाता है, आप फिर काम में लग गए।

    आप कुछ करें ही मत अपनी तरफ से, आप अपनी तरफ से बिलकुल शून्य हो जाएं। और जो हो रहा है आंख के पर्दे पर होने दें। जो भी गुजर रहा है गुजरने दें, आ रहा है आने दें, जा रहा है जाने दें। न आप रोकें, न आप छेड़ें, न आप बीच में उतरें, आप किसी तरह का इनवाल्वमेंट न लें, दूर खड़े हुए देखते रहें।

    कठिन होगा, क्योंकि हमारी आदत निरंतर हर चीज के साथ उलझ जाने की है । चुपचाप बैठ जाना कठिन होगा । चुपचाप का यह मतलब नहीं कि विचार नहीं होंगे, विचार तो होंगे लेकिन आप चुपचाप हों, विचारों को चलने दें।

    जैसे एक फिल्म चल रही है पर्दे पर, तो मस्तिष्क का भी एक पर्दा है, एक प्रोजेक्टर है उसका, जो फिल्म चलाता रहता है। एक फिल्म चल रही है पर्दे पर। बस इतना समझें कि विचार चल रहे हैं, स्मृतियां आ रही हैं, भविष्य के खयाल आ रहे हैं। आने दो, चुपचाप बैठे रहो, देखते रहो । आज कठिन होगा, कल कठिन होगा, परसों कठिन नहीं होगा। बस हिम्मत इतनी रखनी है कि कूद मत जाना, अगर यह बुरा विचार आ गया, इसे अलग करो। बुरे-भले से कुछ लेना-देना नहीं है, साक्षी को न कुछ बुरा है न कुछ भला है।

    कांटे भी उतना ही अर्थ रखते हैं फूल जितना अर्थ रखते हैं । न कांटा बुरा है, न फूल अच्छा है। वह हमारी अपनी समझ के हिसाब से अच्छा-बुरा कर लेते हैं। सब चीजें हैं, और आप चुपचाप बैठे रहें। कुछ ही दिनों में अगर चुपचाप बैठे हैं तो एक अदभुत अनुभव शुरू होगा और वह अनुभव यह होगा कि कभी-कभी ऐसा होगा कि गैप आ जाएगा, इंटरवल आ जाएगा, अंतराल आ जाएगा। कभी-कभी ऐसा होगा कि विचार थोड़ी देर के लिए नहीं होंगे, एकदम लिप्त हो जाएंगे, एक विचार आया और फिर दूसरा नहीं आया और बीच में खाली जगह छूट जाएगी। उस एक खाली जगह से आपको पहली झलकें मिलनी शुरू होंगी। और उस खाली जगह में आप भी नहीं होंगे, इतनी खाली जगह होगी कि बस खालीपन होगा, जस्ट एंप्टीनेस। वही द्वार है, वहीं से पहली झलकें आपको मिलनी शुरू होंगी । और निरंतर इस प्रक्रिया में लगे रहे तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे विचार कम होने लगेंगे खाली जगह ज्यादा होने लगेंगी।

    ऐसा जैसे रास्ते पर एक आदमी निकला और फिर घंटे भर तक दूसरा आदमी नहीं निकला और रास्ता खाली रह गया। एक विचार आया पर्दे पर फिर दूसरा नहीं आया और बहुत देर के लिए पर्दा खाली सफेद रह गया। उस सफेदी में से, उस खालीपन में से, उस एंप्टीनेस में से आपके पहले संपर्क परमात्मा से शुरू हुए, क्योंकि उस क्षण में आप वर्तमान में होंगे। उस क्षण में न आप अतीत में हो सकते, न आप भविष्य में हो सकते। क्योंकि विचार अतीत में ले जा सकता है, विचार भविष्य में ले जा सकता है। जहां विचार नहीं है वहां आप कहीं भी नहीं जा सकते, आप वही होंगे जहां हैं।

    विचार रहित हुए कि आप वर्तमान में हुए। वर्तमान में होने का अर्थ है : विचार रहित हो जाना। लेकिन विचार रहित होने की कोशिश मत करना, नहीं तो कभी विचार रहित नहीं हो सकते। बस चुपचाप देखना विचार को, वह अपने से जाता है। जितना-जितना हमारा देखना बढ़ता है उतना उतना विचार कम होता है, प्रपोर्सनेटली जितना हम देखते हैं भीतर उतना विचार खतम होता है। जिस दिन हम पूरे जग जाते हैं उस दिन विचार नहीं रह जाता। और जहां विचार नहीं रहा और हम पूरे जगे हुए रहे, टोटली अवेयर, विचार गए, हम जगे हैं, अब हम कहां होंगे ? अब हम वहीं होंगे जहां हम हैं, एक इंच इधर-उधर नहीं हो सकते। तब हम खड़े हो गए उस द्वार पर, जहां से मिलन हो जाता है । और इसलिए इसे लोभ की भाषा में मत समझना । आनंद मिलेगा लेकिन आनंद पाने की भाषा में मत समझना, आनंद आएगा लेकिन आनंद को लक्ष्य मत बनाना, अमृतत्व मिलेगा लेकिन अमृतत्व की चेष्टा मत करना ।

     - ओशो 

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