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    ध्यान है भीतर झांकना - ओशो

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    ध्यान है भीतर झांकना - ओशो 

    बीज को स्वयं की संभावनाओं का कोई भी पता नहीं होता है। ऐसा ही मनुष्य भी है। उसे भी पता नहीं है कि वह क्या है क्या हो सकता है। लेकिन, बीज शायद स्वयं के भीतर झांक भी नहीं सकता है। पर मनुष्य तो झांक सकता है। यह झांकना ही ध्यान है। स्वयं के पूर्ण सत्य को अभी और यहीं, हियर एंड नाउ जानना ही ध्यान है। ध्यान में उतरें— गहरे और गहरे। गहराई के दर्पण में संभावनाओं का पूर्ण प्रतिफलन उपलब्ध हो जाता है। और जो हो सकता है, वह होना शुरू हो जाता है। जो संभव है, उसकी प्रतीति ही उसे वास्तविक बनाने लगती है। बीज जैसे ही संभावनाओं के स्वप्नों से आंदोलित होता है, वैसे ही अंकुरित होने लगता है। शक्ति, समय और संकल्प सभी ध्यान को समर्पित कर दें। क्योंकि ध्यान ही वह द्वार हीन द्वार है जो कि स्वयं को ही स्वयं से परिचित कराता है।

    - ओशो 

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