जहां लालच है, वहां चित्त अशांत है - ओशो
जहां लालच है, वहां चित्त अशांत है - ओशो
लालच से भरा हुआ चित्त ही अशांत होता है। जहां लालच है, वहां चित्त अशांत है । और जब तक चित्त अशांत है त तक भगवान से क्या संबंध हो सकता है ? लालच का मतलब क्या है? लालच का मतलब यह है कि जो मैं हूं, उससे तृप्ति नहीं; कुछ और होना चाहिए । फिर चाहे यह कुछ और होना धन का हो, स्वास्थ्य का हो, यश का हो, आनंद का हो, भगवान का हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
लालच का मतलब हैः एक टेंशन, एक तनाव। जो नहीं वह नहीं, जो होना चाहिए वह हो । और जो मैं हूं वह अभी हूं और जो होना चाहिए वह कल होगा । तो कल के लिए मैं खींचा हुआ हूं, तना हुआ हूं। यह तना हुआ चित्त ही लालच से भरा हुआ चित्त है। इसलिए सब तरह की ग्रीड, सब तरह का लोभ अशांति पैदा करेगा। और जहां अशांति है वहां भगवत्-प्राप्ति कैसे ? अशांत चित्त का भगवान से संबंधित होने का कोई उपाय ही नहीं है। अशांति ही तो बाधा है। फिर हम पूछते हैं कि कोई लालच? क्योंकि हमारा मन तो लालच को ही समझता है, एक ही भाषा समझता है, वह है लालच की भाषा। धन के लिए इसलिए दौड़ते हैं, यश के लिए इसलिए दौड़ते हैं। फिर इस सब से ऊब जाते हैं तो हम कहते हैं भगवान के लिए कैसे दौड़ें?
यह थोड़ा समझ लेना चाहिए कि उसके लिए दौड़ना तो संभव है जो हमसे दूर है, लेकिन जो हमारे भीतर ही हो उसके लिए दौड़ना असंभव है। और अगर दौड़े तो चुक जाएंगे।
- ओशो
Deepak
ReplyDeleteI love Osho
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