ध्यान है अमृत—ध्यान है जीवन - ओशो
ध्यान है अमृत—ध्यान है जीवन - ओशो
विवेक ही अंततः श्रद्धा के द्वार खोलता है। विवेकहीन श्रद्धा श्रद्धा नहीं, मात्र आत्म-प्रवंचना है। ध्यान से विवेक जगेगा। वैसे ही जैसे सूर्य के आगमन से भोर में जगत जाग उठता है। ध्यान पर श्रम करें। क्योंकि अंततः शेष सब श्रम समय के मरुस्थल में कहां खो जाता है, पता ही नहीं पड़ता है। हाथ में बचती है केवल ध्यान की संपदा। और मृत्यु भी उसे नहीं छीन पाती है। क्योंकि मृत्यु का वश काल, टाइम के बाहर नहीं है। इसलिए तो मृत्यु को काल कहते हैं। ध्यान ले जाता है कालातीत में। समय और स्थान, स्पेस के बाहर। अर्थात अमृत में। काल, टाइम है विष। क्योंकि काल है जन्म; काल है मृत्यु। ध्यान है अमृत। क्योंकि ध्यान है जीवन । ध्यान पर श्रम, जीवन पर ही श्रम है। ध्यान की खोज, जीवन की ही खोज है।
- ओशो
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