सब खोज व्यर्थ है - ओशो
सब खोज व्यर्थ है - ओशो
लोभ करने का कोई उपाय नहीं है, क्योंकि जिसका हम लोभ करें वह हमारे भीतर ही बैठा हुआ है । और यदि हमने लोभ किया तो हम भटक जाएंगे भीतर से कहीं और चले जाएंगे। और वही लोभ और लालच हमें भटका रहा है। अक्सर तो यही होता है कि एक आदमी गृहस्थ है और संन्यासी हो जाता है, तो लोभ के कारण है। वह कहता है, गृहस्थी में नहीं मिलता आनंद, संन्यस्त होने से आनंद मिल जाएगा। वह कहता है, गृहस्थी में नहीं मिलता परमात्मा और मैं परमात्मा को पाए बिना कैसे रह सकता हूं, तो मैं संन्यासी होता हूं।
लेकिन अभी उसकी जो भाषा है वह गृहस्थी की है। अभी उसे पता भी नहीं चला कि वह गृहस्थी के जो फ्रेमवर्क है, गृहस्थी के दिमाग का, उसके बाहर नहीं हो रहा है। वह उसी के भीतर चल रहा है। अब वह नये उपाय में लग जाएगा – पूजा करेगा, प्रार्थना करेगा, जप करेगा, तप करेगा। ये सब प्रयत्न होंगे पाने के, लेकिन जो पाया ही हुआ है, उसे पाने का कोई भी प्रयत्न उचित नहीं है, अनुचित है।
उसे जानना है; पाना नहीं है। इस फर्क को समझ लेना चाहिए कि उसे सिर्फ जानना है पाना नहीं है। वह पाया हुआ है। ऐसे ही जैसे हमारी जेब में कुछ चीज पड़ी है और हम भूल गए हैं। और अब उसे खोजते फिर रहे हैं, खोजते फिर रहे हैं, वह नहीं मिलती क्योंकि वह जेब में पड़ी है।
सत्य की, प्रभु की, आनंद की, सब खोज व्यर्थ है। असल में मत खोजिए, एक क्षण को भी कुछ मत खोजिए। एक क्षण को भी अगर सारी खोज रुक जाए, सारा लोभ रुक जाए, तो चित्त का आवागमन रुक जाएगा।
- ओशो
No comments