Osho Hindi Pdf- Osho Dhyan Yog ओशो ध्यान योग
ओशो ध्यान योग
ध्यान में घटने वाली घटनाओ, बाधाओं, अनुभूतियो, उपलब्धियों, सावधानियो, सुझावो तथा निर्देशो संबंधि साधको को लिखे गए ओशो के इक्कीस पत्रः
अंततः सब खो जाता है
सुबह सूर्योदय के स्वागत में जैसे पक्षी गीत गाते है-ऐसे ही ध्यानोदय के पूर्व भी मन-प्राण में अनेक गीतो का जन्म होता है। वसंत में जैसे फूल खिलते हैं, ऐसे ही ध्यान के आगमन पर अनेक-अनेक सुगंधे आत्मा को घेर लेती है। और वर्षा में जैसे सब ओर हरियाली छा जाती है, ऐसे ही ध्यान वर्षा में भी चेतना नाना रगो से भर उठती है, यह सब और बहुत-कुछ भी होता है। लेकिन यह अंत नहीं, बस आरंभ ही है। अंततः तो सब खो जाता है। रंग, गंध आलोक, नाद-सभी विलीन हो जाते हैं। आकाश जैसा अंतआकाश (इनर स्पेस) उदित होता है। शून्य, निर्गुण, निराकार। उसकी करो प्रतीक्षा। उसकी करो अभीप्सा। लक्षण शुभ है, इसीलिए एक क्षण भी व्यर्थ न खोओ और आगे बढ़ो। मैं तो साथ हूं ही।
मौन के तारों से भर उठेगा हृदयाकाश
जब पहले-पहले चेतना पर मौन का अवतरण होता है, तो संध्या की भांति सब फीका-फीका और उदास हो जाता है-जैसे सूर्य ढल गया हो रात्रि का अंधेरा धीरे-धीरे उतरता हो और आकाश थका-थका हो दिनभर के श्रम से। लेकिन, फिर आहिस्ता-आहिस्ता तारे उगने लगते हैं और रात्रि के सौदर्य का जन्म होता है। ऐसा ही होता है मौन में भी। विचार जाते हैं, तो उनके साथ ही एक दुनिया अस्त हो जाती है। फिर मौन आता है, तो उसके पीछे ही एक नयी दुनिया का उदय भी होता है। इसलिए, जल्दी न करना। घबड़ाना भी मत। धैर्य न खोना। जल्दी ही मौन के तारो से हृदयाकाश भर उठेगा। प्रतीक्षा करो और प्रार्थना करो।
ऊर्जा-जागरण से देह-शून्यता
ध्यान शरीर की विद्युत-ऊर्जा (बॉडी इलेक्ट्रिसिटी) को जगाता है–सक्रिय करता है- प्रवाह मान करता है। तू भय न करना। न ही ऊर्जा-गतियों को रोकने की चेष्टा करना। वरन, गति के साथ गतिमान होना-गति के साथ सहयोग करना। धीरे-धीरे तेरा शरीर-भान, भौतिक-भाव (मैटेरियल-सेन्स) कम होता जाएगा और अभौतिक, ऊर्जा-भाव (नॉन मैटिरियल इनर्जी-सेन्स) बढ़ेगा। शरीर नहीं-ऊर्जा-शक्ति ही अनुभव में आएगी। शरीर की सीमा है-शक्ति की नहीं। शक्ति के पूर्णानुभव में अस्तित्व (एग्ज़स्टेस) में तादात्म्य होता है। सम्यक है तेरी स्थिति-अव सहजता से लेकिन दृढ़ता से आगे बढ़। जल्दी ही सफलता मिलेगी। सफलता सुनिश्चित है।
ध्यान-अशरीरी-भाव और ब्रह्म-भाव
ध्यान में शरीर-भाव खोएगा। अशरीरी दशा निर्मित होगी। शून्य का अवतरण होगा। इससे भय न ले-वरन प्रसन्न हो, आनंदित हो। क्योकि यह बड़ी उपलब्धि है। धीरे-धीरे ध्यान के बाहर भी अशरीरी भाव फैलेगा और प्रतिष्ठित होगा। यह आधा काम है। शेष आधे में ब्रह्म-भाव का जन्म होता है। पूर्वार्ध है-अशरीरी-भाव। उत्तरार्ध है-ब्रह्म-भाव। और श्रम में लगे। स्रोत बहुत निकट है। और संकल्प करे। विस्फोट शीघ्र ही होगा। और समर्पण करे। और, स्मरण रखें कि मैं सदा साथ हूँ; क्योकि अब बड़ा निर्जन पथ सामने है। मंजिल के निकट ही मार्ग सर्वाधिक कठिन होता है। सुबह के करीब ही रात और गहरी हो जाती है।
No comments