योग का अर्थ - ओशो
योग का अर्थ है - ओशो
योग का अर्थ है, यत्नपूर्वक समाधि। इसलिए पतंजलि योगशास्त्र तुम्हें सविकल्प समा ध तक ले जाएगा। निर्विकल्प समाधि तो घटेगी। द्वार खुल जाएगा सविकल्प समाधि से। निर्विकल्प समाधि आएगी। तुम तैयार होते परमात्मा एक क्षण भी देरी नहीं क रता। तुमने द्वार खोला, वह मौजूद है। वह भीतर आ जाता है। और जव परमात्मा भीतर आता है तव स्वभावत: तुमने कुछ भी तो नहीं किया था उसे पाने को। तुम कैसे कहोगे, कि यह मेरे कारण भीतर आया? कार्य-कारण की शृंखला टूट जाती है।
इसे तुम आगे समझोगे कवीर के वचनों में कार्य-कारण की श्रृंखला टूट जाती है। अब तुम यह नहीं कह सकते कि मैंने दरवाजा खोला,इसलिए सूरज भीतर आया। तुम इतना ही कह सकते हो कि मैं दरवाजा न खोलता, तो सूरज भीतर नहीं आ स ता था। मेरे दरवाजे खोलने से, दरवाजा ही खुलता है। सूरज का आना, दरवाजे के खुलने से जुड़ा ही नहीं है। सिर्फ अवरोध टूट जाता है। सूरज तो आ ही रहा था, सि र्फ वीच का अवरोध हट जाता है। तुम भर वीच से हट जाओ। और परमात्मा प्रतिपल बरस रहा है। आपाढ़ की प्रतीक्ष | करने की जरूरत नहीं, उसके मेघ सदा ही घिरे हैं। वह कोई मौसम नहीं है, कि आता है और चला जाता है। सदा जो मौजूद है, सदा ही उसके मेघ आकाश को घे रे हैं। तुम जिस दिन हृदय पट के द्वार खोल दोगे, उसी दिन सहज समाधि घटित ह जाएगी लेकिन सहज समाधि के लिए तो कछ किया नहीं जा सकता।
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