चालाकी शास्त्र है संसार का - ओशो
चालाकी शास्त्र है संसार का - ओशो
दिल्ली के राजनीतिज्ञों ने जो नगरी बसाई है राजनीति ज्ञों की, उसका नाम चाणक्य नगरी रखा है। बिलकुल ठीक रखा है। क्योंकि सारे बेई मान, चोर सब वहां इकटे हैं। वह चाणक्य नगरी बिलकुल ठीक है। चाणक्य भारती य मैक्येवली है। ये दो आदमी मैक्येवली और चाणक्य वैसे ही हैं संसार के लिए जैसे वृद्ध, महावीर, कृष्ण, क्राइस्ट, मोहम्मद धर्म के लिए। ये महर्षि हैं संसार के। किसी पर भरोसा मत करना। मैक्येवली की किताब द प्रिन्स का इतना प्रभाव पड़ा यूरोप में, सभी सम्राट और राज । उससे प्रभावित हुए। क्योंकि राजाओं के लिए लिखी गई किताव है, राजनीतिज्ञों के लिए। लेकिन प्रभाव इतना पड़ा, कि मैक्येवली को कोई आदमी वजीर बनाने को र जी नहीं था। क्योंकि यह आदमी इतना चालाक है और इतना जानकार है। मैक्येव ली गरीब आदमी मरा । उसको नौकरी नहीं मिली। हालांकि कोई भी सम्राट उसको नौकरी देने को उत्सुक हो जाता, क्योंकि वह आदमी सच में चालबाज था। लेकिन उसकी किताब का तो प्रभाव बहुत पड़ा। किताव तो सबने पढ़ी। लेकिन द्वार
पर भी उसने दस्तक दी, लोगों ने कहा क्षमा करो। क्योंकि तुम्हारी किताब से हम सीखे, उसी का उपयोग कर रहे हैं। तुम्हें करीब लेना खतरनाक है। तुम जरूरत से ज्यादा जानते हो आदमी की बेईमानी के संबंध में। तुम्हारा भरोसा नहीं किया जा स कता। संदेह शास्त्र है संसार का। और मन की तैयारी संदेह के लिए की जाती है। स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी संदेह सिखाते हैं। विश्वास तो कब करना, जब संदेह की कोई ज गह न रह जाए। यह सूत्र है संसार का। लेकिन संदेह की जगत तो सदा रहेगी। और आत्मा के जगत में तो संदेह की जगह बहुत बड़ी है। वहां तो तुम अनजान रा स्ते पर जा रहे हो। अनुभव तुम्हारा कोई भी नहीं है। और श्रद्धा की मांग है, खतरा है। श्रद्धा तुम कर न सकोगे, अगर संदेह के मन को तुमने जारी रखा।
- ओशो
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