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    तुम्हारे सामने बुद्ध भी हारे हुए हैं - ओशो

    Even Buddha is defeated in front of you - Osho


    तुम्हारे सामने बुद्ध भी हारे हुए हैं - ओशो 

            कथा है, कि वृद्ध को जव ज्ञान हुआ, तो सात दिन तक वे चुप बैठे रहे। बड़ी मीठी कथा है। क्या करते रहे चुप बैठ कर? वहुत वार अदम्य वेग से उठी करुणा, कि जाए। वहूत लोग भटकते हैं। सारे लोग भटकते हैं। जो मुझे मिल गया है वह वांट दूं । लेकिन कोई चीज रोकती रही...कोई चीज रोकती रही। बुद्ध जैसा व्यक्ति भी हिम्मत न जुटा सका। तुम्हारे सामने वृद्ध भी हारे हुए हैं। वुद्ध को भी डर लगा। जिसको अब कोई डर नहीं बचा है, जिसको मृत्यु का भय नहीं। वह भी तुमसे डरता है। जो यम से नहीं डरता, वह तुमसे डरता है। सात दिन तक वृद्ध ने प्रतिरोध किया अपना ही। सब तरह से रोका, कि नहीं। अपने को समझाया, कि जो जागनेवाले हैं वे मेरे विना भी जाग जाएंगे। और जो नहीं जा गनेवाले हैं, मैं लाख सिर पटकू, वे सुनेंगे नहीं। फिर क्यों व्यर्थ मेहनत करूं? 

            कथा है, कि आकाश के देवता चिंतत हो गए। बड़ी बेचैनी फैल गई आकाश के देव ताओं में! बेचैनी यह, कि कभी करोड़-करोड़ वर्षों में कभी कोई एक व्यक्ति बुद्धत्व को उपलब्ध होता है। और वह भी अगर चूप रह गया, तो जो भटकते हैं मार्ग पर उनका क्या होगा? जतो अंधेरे में प्रतीक्षा करते हैं, अनजानी प्रतीक्षा, उन्हें पता भी नहीं है। किसी का जो मार्ग वताएगा बतानेवाले का पत्थर से ही वे स्वार | लेकिन फिर अनंत-अनंत काल से खोजते तो हैं ही। भीतर कहीं कोई गहरे में छि पा हुआ वीज तो पड़ा ही है। न फूट जाता हो, ठीक भूमि न मिली हो, सूरज का प्र काश न मिला हो, कोई पानी देनेवाला न मिला हो, कोई साज-संभाल करनेवाला न मिला हो। लेकिन वीज तो पड़ा ही है; उनका क्या होगा? 

            कथा है कि आकाश के देवता उतरे। बुद्ध के चरणों में उन्होंने सिर रखा और कहा, कि नहीं अब चुप न बैठे, उठे। बहुत देर अव वैसे ही हो गई। देवता का अर्थ है, ऐसी चेतनाएं जो अत्यंत शुभ परिणाम हैं। ऐसी चेतनाएं जिनके जीवन से अशुभ खो गया है, सिर्फ शुभ बचा है। अभी वे पूर्ण मुक्त नहीं हैं। क्योंकि जव शभ भी खो जाएगा तभी पर्ण मक्ति होगी। देवता का अर्थ है शद्धतम चेतनाएं मुक्ततम नहीं। पहले अशुद्धि से दवी हुई चेतनाएं हैं, जिनको हम राक्षस कहें, असुर कहें। नारकीय योनि में पड़े हुए लोग कहें। और फिर शुद्ध चेतनाएं हैं जो स्वर्ग में हैं, शांत हैं, शुभ-परिणाम हैं। किसी का बुरा नहीं चाहतीं, भला चाहती हैं; लेकिन चाह वाकी है। नरक में जो पड़े हैं उनके हाथ में जो जंजीरें हैं वह लोहे की हैं। स्वर्ग में जो पड़े हैं उनके हाथ में जो जंजीरें हैं वह सोने की हैं। हीरे माणिक से जड़ी हैं, पर जंजीरें हैं। मुक्त वह है जिसमें न शुभ रहा, न अशुभ रहा। जिसकी लोहे की जंजीरें सोने की जं जीरे सव टूट गई। मुक्त वह है, जिसका द्वंद्व समाप्त हो गया। जिसे भीतर दो न रहे | शुभ-अशुभ , अच्छा-बुरा, रात-दिन, स्वर्ग-नर्क, सुख-दुख सब खो गए| देवता का अर्थ है, शुद्ध, सुखी चेतनाएं। निश्चित ही स्वभावत: उनके ही हृदय में कं पन पैदा होगा क्योंकि वे निकटतम हैं मुक्त पुरुषों के। नर्क में पड़े लोगों को पता भी न चला, कि कोई बुद्ध हो गया है।

    - ओशो 

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