प्रार्थना तुम्हारे और तुम्हारे परमात्मा के बीच का संबंध है - ओशो
प्रार्थना तुम्हारे और तुम्हारे परमात्मा के बीच का संबंध है - ओशो
प्रार्थना तुम्हारे और तुम्हारे परमात्मा के बीच का संबंध है समाज से उसका केई ले ना देना नहीं पूजा तुम्हारे और तुम्हारे परमात्मा के बीच का अत्यंत गोपनीय संबंध जब तुम किसी व्यक्ति के प्रेम में होते हो, किसी के प्रेम में किसी पुरुष के प्रेम में, तब तुम एकांत चाहते हो तुम नहीं चाहते, कि बीच बाजार में बैठकर और प्रेम क । रास रचाए, कि लोग देखें तुम द्वार दरवाजे बंद कर देते हो तुम प्रकाश तक बूझा देते हो, ताकि एकांत पूरा हो जाए ताकि इस आत्मीयता के क्षण में कोई हस्त क्षेप न हो ताकि प्रेमी और प्रेयसी बिलकुल अकेले रहे जाएं।
परमात्मा के बीच तो बड़े से बड़े प्रेम का संबंध है। वह तुम्हारे और उसके बीच संबंध है उससे संसार का कुछ लेना देना नहीं है। भीड़ से उसका कोई नाता नहीं वह अत्यंत गोपनीय है। जहां तुम हो और वह है और कबीर कहते है कि मेरा पुरा तन तो रखाव हो गया, वीणा बन गया सब रग तंत-रग रग, नाड़ी नाड़ी, रेशा रेशा शरीर का तार बन गए और एक ही धुन बज रही है अहर्निश विरह बजावे नि त यह थोड़ा समझने जैसा है।
जितना ही व्यक्ति परमात्मा को पा लेता है उतनी ही विरह की वीणा बजने लगती है। तुम जरा इसे मुश्किल समझोगे तुम समझोगे कि परमात्मा न मिला हो, तब वि रह की वीणा बजनी चाहिए। जब मिल गया फिर विरह की क्या वीणा? यह तुम्हें थोड़ा जटिल लगेगा लेकिन जब तक तुमने परमात्मा को जाना ही नहीं, तुम विरह का अनुभव ही न क र सकोग विरह तो उसका अनुभव है जिसने मिलने जाना हो तुम कैसे जानोगे वि रह को? तुम कैसे रोओगे परमात्मा के लिए? आंसू कैसे निकलेंगे? उससे तुम्हारी कोई पहचान नहीं, उससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं एक क्षण को भी तुम्हारी कोई मु लाकात नहीं हुई। परमात्मा बिलकुल अनजान है ना के बराबर है है या नहीं, यह भी संदिग्ध है तुम्हें तुम कैसे उसके लिए रोआगे? कैसे तुम्हारा पूरा तन बीणा बन जाएगा? कैसे तुम्हारे रग रेशे तार बन जाएंगे? कैसे तुम्हारे हृदय में उठेगा विरह का गीत? मिलन के बाद ही विरह संभव है।
- ओशो
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