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    विरह को जानना - ओशो

    विरह को जानना - ओशो


     विरह को जानना - ओशो 

            बुद्ध ने कहा है, कि एक तो निर्वाण है जो जीते व्यक्ति को उपलब्ध होता है औ र दूसरा महानिर्वाण है, जब शरीर गिर जाता है, तब उपलब्ध होता है। हिंदू कहते हैं, जीवन मुक्त और मोक्ष जैन कहते हैं, केवल ज्ञान और कैवल्य ज्ञान तो हो गय तैयारी पूरी है, बस नाव की प्रतीक्षा है, कब आ जाए थोड़ी देर तट पर खड़े र हना है। प्रतीक्षा दुर्भर हो जाती है। जैसे जैसे समय करीब आता है..... 

            तुमने कभी रेलवे स्टेशन पर देखा लोगों को प्रतीक्षा करते? कभी गाड़ी के आने में देर है। वह अखबार पढ़ रहे हैं, गपशप कर रहे हैं, चाय पी रहे हैं, यहां वहां जा र हे हैं। कोई नहीं देख रहा है, कि गाड़ी आ रही है या नहीं। घंटा बजा एक लहर दड़ गई। लोगों ने अपने सामान संभाल लिए बैग उठा लिए, कपड़े लते ठीक कर लए, खड़े हो गए, बातचीत बंद हो गई। गाड़ी जैसे-जैसे आती, स्टेशन वैसे वैसे आतु र होता जाता है। लोग बिलकुल तैयार हैं। किस क्षण...एक क्षण भी अब मुश्किल मा लुम पड़ता है 

            ठीक वैसी दशा भक्त की हो जाती है नाव करीब है। खबर आ गई। संदेश आ गए हवाओं में नाव दिखाई भी पड़ने लगी किनारे की तरफ आती भक्त किनारे पर खड़ा है। सब रग तंत रबाब तन, विरह बजावे नित्त, और न कोई सुन सके, के सांई के चित्त इस तन का दीवा करूं, बाती मूल्यूं जीव, लोही सींचौ तेल ज्यूं, कब मुख देख्यां पीव उस प्यारे का मंह कब देखंगा? सब करने को राजी है। इस तन का दीवा करूं-इस सारे शरीर को दीया बनाने को राजी हूं बाती मेल्यूं जीव-प्राण को बाती बनाने को राजी हूं। लोही सींचौ तेल ज्यं खुन को तेल बनाने को राजी हं। .....कब मुख देख्यौ पीव कब देखंगा प्यारे का मुख? कब होगा उससे पूर्ण मिलन? क ब ऐसे मिट जाऊंगा जैसे बूंद सागर मग खो जाती है, कि रत्ती भर का फासला न । हर जाए, दुई न रह जाए। जब तक शरीर है, तब तक थोड़ी सी दुई बची रहती है। डूबा रहता है घड़ा पानी में, लेकिन जरा सा फासला बना रहता है। वह फासला ही विरह की अग्नि है और धन्य हैं, वे जो विरह को जान लेते हैं क्योंकि वे, वे ही लोग हैं जिन्होंने थोड़े से मिलन को जाना है.


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