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    धार्मिक आदमी - ओशो

    धार्मिक आदमी - ओशो


    धार्मिक आदमी - ओशो 

             जीसस को यहूदियों ने मार डाला क्योंकि अधार्मिक मालूम हए। अधर्म क्या था? जो वात सबसे बड़ी अधार्मिक हो गई वह थी, कि जीसस को लोगों ने देखा, वे कभीकभी शरावियों के घर में ठहर जाते. वेश्याओं के घर में ठहर जाते। गांव के पूरोहि तो ने पकड़ लिया और कहा, कि यह तो हमने कभी धार्मिक आदमी का लक्षण नहीं देखा। जो अछूत है, छूने योग्य भी नहीं, जिनकी तरफ देखना भी नहीं चाहिए-वेश याओं और शराब पीनेवालों और चारों के घर में भी तुम्हें ठहरे हुए देखा गया है। तुम किस भांति के धार्मिक आदमी हो? 

            कहते हैं जीसस ने कहा, कि अगर वेश्या के भीतर परमात्मा रह सकता है, तो में उसके घर में क्यों नहीं ठहर सकता? और अगर परमात्मा ने चोर को इस योग्य न हीं छोड़ा कि छोड़ दे, तो मैं कौन है? यह धार्मिक आदमी है। लेकिन तुम्हारे धर्म के क्रिया-कांड के बाहर पड़ रहा है। तुम्हरा धार्मिक आदमी तो चोर की तरफ देखता नहीं। तुम्हारा धार्मिक आदमी चोर औ र वेश्या को नर्क में सड़ाने का पूरा आयोजन कर रहा है। यहूदियों में प्रथा थी कि; छह दिन परमात्मा ने काम किया, सातवे दिन विधाम किया; इसलिए सातवे दिन कोई काम न करे| यहूदी सातवे दिन सब काम बंद कर देते थे।

            जीसस सातवे दिन मंदिर के पास आए| और अंधा आदमी आया और उस अंधे आद मी ने प्रार्थना की कि मेने सुना है, कि तुम अगर छू दो तो मेरी आंख ठीक हो जा। जीसस ने उसे छू दिया और उसकी आंख ठीक हो गई। पुरोहितों ने कहा, कि यह तो अधार्मिक कृत्य है। सोचो! अंधे को आंख देना अधार्मिक कृत्य हुआ, क्योकि शास्त्र में लिखा है। वेद, य हूदियों का कहता है कि सातवे दिन कृत्य बंद| पुरोहित ने पूछा, कि तुमने पाप किया है, सातवे दिन तो सब काम बंद होना चाहिए 

            जीसस ने पूछा कि सातवे दिन तुम भोजन करते हो या नहीं? और सातवे दिन तुम आंख झपते हो या नहीं? और सातवें दिन तुम श्वास लेते हो या नहीं? और सात वे दिन परमात्मा ने माना विधाम किया, लेकिन विधाम भी कुछ करना है। वह भी कृत्य है। और फिर अगर तुम्हारे नियम टूटने से एक आदमी की आंख खुल गई हो , तो नियम के लिए आदमी है कि आदमी के लिए नियम है? मैं तुमसे पूछता हूं, उचित है यह कि यह अंधा आदमी आंखवाला हो जाए, या उचित है यह, कि इस अंधे आदमी को मैं कह दं कि में धार्मिक आदमी हूँ. सावे दिन में कुछ भी नहीं कर सकता। क्या भरोसा है कि कल में न वचूं? और क्या भरोसा है कि कल यह अंधा आदमी न बचे? तुम गारंटी देते हो, कि कल हम दोनों रहेगे? मैं इसकी आंख ठी क करने और यह आंख ठीक करवाने? नहीं, धार्मिक आदमी को बात नहीं जमती| उसका तो हिसाव है। वह अपने हिसाब से जीता है। उससे नियम सख्त हैं। अंधा आदमी है। लकड़ी से टटोलता है। 

    - ओशो

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