एक ज्ञान है, जो मन को भरता नहीं, खाली करता है - ओशो
एक ज्ञान है, जो मन को भरता नहीं, खाली करता है - ओशो
एक ज्ञान है, जो भर तो देता है मन को बहुत जानकारी से, लेकिन हृदय को शून्य नहीं करता। एक ज्ञान है, जो मन को भरता नहीं, खाली करता है। हृदय को शून्य का मंदिर ब नाता है। एक ज्ञान है, जो सीखने से मिलता है और एक ज्ञान है जो अनसीखने से ि मलता है। जो सीखने से मिले, वह कूड़ा करकट है। जो अनसीखने से मिले, वही मूल्यवान है। सीखने से वही सीखा जा सकता है, जो बाहर से डाला जाता है। अनसीखने से उसका जन्म होता है, जो तुम्हारे भीतर सदा से छिपा है। ज्ञान को अगर तुमने पाने की यात्रा बनाया, तो पंडित होकर समाप्त हो जाओगे।
ज्ञान को अगर खोने की खोज बनाया, तो प्रज्ञा का जन्म होगा। पांडित्य तो बोझ है; उससे तुम मुक्त न होओगे। वह तो तुम्हें और भी बांधेगा। वह तो गले में लगी फांसी है, पैरों में पड़ी जंजीर है। पंडित तो कारागृह बन जाएगा, तुम्हारे चारों तरफ। तुम उसके कारण अंधे हो जाओगे। तुम्हारे द्वार दरवाजे बंद हो जाएंगे। क्योंकि जिसे भी यह भ्रम पैदा हो जाता है, कि शब्दों को जानकर उसने जा न लिया, उसका अज्ञान पत्थर की तरह मजबूत हो जाता है। तुम उस ज्ञान की तलाश करना जो शब्दों से नहीं मिलता, नि:शब्द से मिलता हैं। ज सोचने विचारने से नहीं मिलेगा, निर्विचार होने से मिलता है। तुम उस ज्ञान को खोजना, जो शास्त्रों में नहीं है, स्वयं में है। वही ज्ञान तुम्हें मुक्त करेगा, वही ज्ञान तुम्हें एक नए नर्तन से भर देगा। वह तुम्हें जीवित करेगा वह तुम्हें तुम्हारी कब्र के ऊपर बाहर उठाएगा। उससे ही आएंगे फूल जीवन के। और उससे ही अंतत: परमातमा का प्रकाश प्रकटेगा।
- ओशो
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