• Latest Posts

    विरह मीठी पीड़ा - ओशो

    separation sweet pain - Osho


     विरह मीठी पीड़ा - ओशो 

            इजिप्त में बड़ी पुरानी उक्ति है, कि तुम परमात्मा को खोजने तभी निकलते हो, जव वह तुम्हें मिल ही चुका होता है। नहीं तो तुम खोजने कैसे निकलोगे? लेकिन तव विरह वहुत सताता है। लेकिन उस विरह में आनंद है। उस विरह में परम आनंद है। वह विरह पीड़ा जैसा नहीं है। वह विरह बड़ा मधूर और मिठास भरा है। तुमने मीठी पीड़ा जानी? वह विरह मीठी पीड़ा है। बड़ी मधूरी है पीड़ा| काटती रहती भीतर, लेकिन संगीत की तर ह।स्वर उसका गूंजता रहता है, लेकिन वीणा के स्वर की भांति | धन्य हैं वे, जिन्हें थोड़ा सा मिलन का स्वाद मिला और जो महा-मिलन की पीड़ा से ___ भर गए हैं। जिनका शरीर वीणा हो गया। और उस वीणा पर एक ही स्वर निरंतर उठ रहा है विरह का स्वर| मिलन के बाद विरह है और विरह के वाद महा-मिलन | आज इतना ही 


    पाइवो रे पाइवो ब्रह्मज्ञान
    13 मई, 1975, प्रातः, श्री रजनीश आश्रम, पूना

    No comments