जिसे हम जागृति कहते हैं; वो विलकुल खोटी है - ओशो
जिसे हम जागृति कहते हैं; वो बिलकुल खोटी है - ओशो
बुद्ध को हमने जागृत कहा है। बुद्ध शब्द का अर्थ है-जो जाग गया। जो होश से भर गया। अगर बुद्ध मापदंड हों जागरण के, तो तुम्हारा जागरण क्या होगा? एक खोटा सिक्का, जो सिक्के जैसा लगता है, लेकिन सिक्का है नहीं। एक झूठ, जा सत्य का दावा करता है, लेकिन सत्य है नहीं। एक मुर्दा लाश, जो ठीक जीवित आदमी जैसी ही मालूम पड़ती है, नाक नक्शा विलकुल जीवित आदमी जैसा, लेकिन भीतर कोई प्राण नहीं है। एक वुझा हुआ दीया, जिसमें सव हैं; दीया है, वाती है, तेल है लेकिन ज्योति नहीं।
मूर्छा के तीन रूप हैं। एक, जिसे हम जागृति कहते हैं; जो विलकुल खोटी है। क्यों कि जागे हुए भी तुम जागे हुए नहीं होते। जागकर भी तुम जो करते हो, वह खबर देता है कि तुम सोये हुए हो। तुमने हजार दफे तय किया है, कि अब दोबारा क्रोध नहीं करेंगे। और फिर एक आ दमी अपमान कर देता है, या तुम्हें लगता है अपमान कर दिया। या किसी आदमी का भीड़ में तुम्हारे पैर पर पैर पड़ जाता है और एक क्षण भी नहीं लगता। एक क्ष ण की देरी भी नहीं होती, और आग उवल उठती है। और तुमने उनके वार तय ि कया है कि अब क्रोध न करेंगे। हजार बार कसमें ली हैं। हजार बार पछताए हो। वह सब कहां चला गया पछतावा? यह याददाश्त इतनी जल्दी कैसे खो जाती है? होश होता, तो साथ रहती। बेहोशी में याददाश्त साथ कैसे रह सकती है? क्षण में आग जल उठती है। फिर वही क्रोध खड़ा है। फिर तुम पछताओगे घड़ी भर के वाद; लेकिन न तुम्हारे पछतावे का कोई मूल्य है और न तुम्हारे क्रोध का कोई मूल्य है। तुम्हारा पछतावा भी झूठ है। क्योंकि तुम कितनी बार पछता चुके। अव रुकते नहीं। अब रुक जाओ।
- ओशो
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