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    आत्मा सभी के भीतर नहीं है - ओशो

    The soul is not within everyone - Osho


    आत्मा सभी के भीतर नहीं है - ओशो 

    बुद्ध के पास एक आदमी आया और उसने कहा, कि मुझे कुछ शिक्षा दें। मैं संसार की सेवा करना चाहता हूं। वुद्ध उदास हो गए| वह आदमी कहने लगा, आप उदास  क्यों हो गए हैं? बुद्ध ने कहा कि उदास इसलिए हो गया हूं, क्योंकि तुम अभी हो ही नहीं, संसार की सेवा कौन करेगा? और तुम सेवा के नाम से दूसरों को सताने लगोगे| तुम कृपा करो। तुम पहले अपनी सेवा कर लो। पहले तुम हो तो जाओ। 

            गुरजिएफ–पश्चिम का एक बहुत बड़ा रहस्यवादी संत इस सदी का कहता था, कि आत्मा सभी के भीतर नहीं है। उसकी बात में थोड़ी सच्चाई है। क्योंकि आत्मा तो उन्हीं के भीतर है, जो जागे हुए हैं। वाकी तो सिर्फ मिट्टी के पुतले हैं वाकी तो सव पदार्थ हैं। उनके भीतर अभी आत्मा का कोई आविर्भाव नहीं हुआ है। उसकी वात में सचाई है। क्योंकि आत्मवान होने का एक ही अर्थ होता है, कि तुम अपने मालिक हुए अब तुम जो चाहो. वही होगा। तुम हवा में कंपते हो पत्ते की तरह, कि जव झोंका आएगा तब कंपोगे और जव झोंका नहीं आएगा तो लाख चाहो, तो कंप सकोगे। 

            अव तुम यंत्रवत नहीं हो। तुम मनुष्य हो। मनुष्य का अर्थ है, कि अव तुम्हारे भीतर से निकलेंगे तुम्हारे कृत्य। वाहर की घटनाओं से पैदा न होंगे। परिस्थितियां नहीं, अब तुम मूल्यवान हो। तभी तो तुम आत्मवान होओगे। अन्यथा आत्मा है, यह केवल सिद्धांत है। कभी-कभी किसी व्यक्ति में आत्मा होती है। तुममें आत्मा ऐसे ही है, जैसे वीज में वृक्ष। हुआ न हुआ बराबर। हो सकता है, लेकिन है नहीं। और हो सकता और होने में वड़ा फर्क है। वह केवल संभावना है वीज की, कि अगर ठीक ठीक समुचित भूमि मिले, समुचित खाद मिले, समुचित सुरक्षा मिले, समुचित जल, समुचित सूर्य की किरणें मिलें, सूरक्षा मिले तो संभावना है, कि वीज वृक्ष हो सकेगा। लेकिन बहुत सी शर्ते पूरी हों, तव । अन्यथा वीज वीज की तरह ही मर जाएगा और वृक्ष न हो सकेगा।

    - ओशो

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