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    सहज समाधे सुख में रहिवो- ओशो

    sahaj samaadhe sukh mein rahivo- osho


    सहज समाधे सुख में रहिवो- ओशो 

            ... जिसे तुम सुख कहते हो, कवीर उस सुख की बात नहीं कर रहे हैं। क्योंकि उस सु ख में रहना हो ही नहीं सकता वह आया भी नहीं, कि गया हो जाता है। आ भी नहीं पाया, कि जा रहा है। इधर तुम देख रहे थे कि मुंह था अपनी तरफ, तुम ठी क से पहचान भी न पाए थे कि सुख आ रहा था, कि देखा कि पीठ हो गई, जा र हा है। क्षण भर के सूख में कैसे रहोगे? होश आते ही क्षण खो जाता है। और फिर सुख जसे तुम सुख कहते हो-जब आता है, तब भी मन सुख से ही भरा रहता है। क्यों क तुम जानते हो कि यह टिकेगा नहीं तब भी भीतर एक गहरी उदासी घेरे रहती है चित्त को तुम जानते हो भलीभांति, कि यह लहर की तरह आया, और लहर की तरह चला जाएगा। 

            यह लहर तट पर सदा रुकनेवाली नहीं है। जैसी आई है, वै सी चली जाएगी। यह ज्वारा जल्दी ही भाटा हो जाएगा। स्वभावतः जब सुख आता है, और पता चलता रहता है कि गया...गया...गया कैसे तूम सुख में रह सकते हो ? सुख आता है, तो तुम पकड़ने की कोशिश से भर जाते हो रहना तो बहुत मुश्किल है, पकड़ते हो रोक लें थोड़ी देर और, एक क्षण औ र, उस पकड़ने में ही वह क्षण खो जाता है, जो कि जीने का क्षण हो सकता था। सूख आता है, तब कहीं चला न जाए, यह चिता मन में व्याप्त हो जाती है। दुख हता है, तब तुम दुख से पीड़ित दुख होता है, तब तुम चिता से पीड़ित, कि कैसे जाए। सुख होता है, तो तुम इस चिता से पीड़ित कि कहीं चला न जाए कि जब गया कि अब गया कैसे बांध लूं। रह कैसे पाओगे? सुख में रहना तो तभी हो सकता है, जब सुख आए और न आ ___ गया, फिर जाने को न हो तुम्हारा स्वभाव हो जाए, चित्त की वृत्ति नहीं चित्त कवत्ति तो लहर की तरह आती है और चलती जाती है। तुम जिसको सुख कहते ह 1. वह चित्त की एक तरंग है कबीर जिस सुख की बात कर रहे है, वह अस्तित्व की अवस्था है। वह आत्मा की भावदशा है स्वभाव फिर जाता नहीं।

            बोधिधर्म ने कहा, जो चौबीस घंटे और सदा नहीं है, वह तेरा स्वभाव नहीं है। आता है, जो चला जाता है, वह त् कैसे हो सकता है? त् तो सदा है क्या त् यह भी कह सकता है, कि कभी-कभी तु होता है और कभी कभी नहीं भी हो जाता है ? नहीं, सम्राट न कहा, मैं तो चौबीस घंटे में चाहे क्रोध हो, चाहे अशांति हो, चाहे शांति हो, चाहे सुख हो, चाहे नींद हो, चाहे जागरण हो, मैं तो सतत हूं तो वो धधर्म ने कहा, वह जो सतत है, उसकी फिकर कर उसको जान और जो कभी अ ता है और कभी चला जाता है, वह तो बाहर की तरंग है किनारे को छूती है, ल ट जाती है। उस पर ज्यादा ध्यान मत दे।

            न तो सुख मूल्यवान हे तुम्हारा, न दुख मूल्यवान है तुम्हारा तुमने बहुत ध्यान इन पर दिया, इसलिए तुम बुरी तरह उलझ गए हो वे ध्यान देने योग्य भी नहीं है। उ पेक्षा के अतिरिक्त उनके प्रति दसरा भाव नहीं चाहिए सूख आए तो उपेक्षा रखना, क्योंकि वह जाने ही वाला है दुख आए तो उपेक्षा रखना, कि जानते हो कि कित नी देर टिकेगा! कभी दुख सदा नहीं टिकता तो फिर क्या इतनी परेशान होने की जरूरत है? रह लेने दो थोड़ी देर आ गया है पक्षी उड़कर तुम्हारे कमरे में, दुख का हो या सुख का क्षण भर फड़फड़ा एगा, दुसरी खिड़की से निकल जाएगा कोई सदा रहने को नहीं है। एक खिड़की से प्रवेश कर जाता है पक्षी, क्षण भर फड़फड़ाता है, दूसरी खिड़की से निकल कर, अ नंत यात्रा पर निकल जाता है। तुम तो वह भवन हो, जहां पक्षी थोड़ी देर उड़ा-बह रिक्तता, वह खाली जगह; उसी ससे अपना तादात्म्य करो, तो तुम समझ पाओगे कबीर किस सुख की बात कर रहे हैं! जो आता है, और जाता नहीं आया कि आ या, फिर जाने का नाम नहीं लेता वह कोई मेहमान नहीं है, वह तुम ही हो वह कोई अतिथि नहीं है, वह स्वयं आतिथेय है। मेहमान नहीं, मेजबान वह तुम ही हो वह कोई किनारे पर आनेवाली तरंग नहीं, वह किनारा ही है।

    - ओशो 

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