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    सहज समाधे सुख में रहिवा, कौटि कलप विश्राम | गुरु कृपाल कृपा जब किन्हीं, हिरदै कंवल विगासा - ओशो

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    सहज समाधे सुख में रहिवा, कौटि कलप विश्राम | गुरु कृपाल कृपा जब किन्हीं, हिरदै कंवल विगासा - ओशो 

            जब गुरु का प्रसाद मिला, जब गुरु की कृपा हुई, जब उसकी अनुकंपा बरसी, तो ह दय का कमल विकसित हुआ। खुद की चेष्टा से भूमि तैयार होती है। इसलिए जो लोग खुद की चेष्टा को ही सब कुछ समझ लेते है, भटक जाते है। खुद की चेष्टा ऐसी ही है, जैसे कोई अपने जुतों के बंदों को उठाकर खुद को उठाने की कोशिश करे थोड़ा-बहुत उछल कूद मचा स कता है क्षण दो क्षण को, फीट दो फीट छलांग भी लगा सकता है। 

            लेकिन कितनी देर यह छलांग टिकेगी? उछल भी नहीं पाएगा, कि पाएगा कि फिर जमीन पर ख . डा है आदमी की सामर्थ्य कितनी ! बड़ी छोटी सामर्थ्य है उस छोटी सामर्थ्य से विराट को खोजने हम जाएं, तो हम विराट को भी रंग डालेंगे वह विराट भी हम जैसा ही छो टा हो जाएगा, इसलिए तो हमारे सब भगवान छोटे हो गए हैं। छोटे आदमी का भग वान बड़ा कैसे हो सकता है? तुम राम को बनाओगे, तो अपनी ही शक्ल में बनाओगे कितने ही धनप वगैरह दे दो, कितनी ही मूर्ति सुंदर बनाओ, लेकिन होगी आदमी ही मुर्ति तुम्हारी ही मूर्ति का प्रतिफलन होगा तुम कृष्ण का जीवन पढ़ोगे, तुम क्या पढ़ोगे? तुम अपने को ही पढ़ लोगे बुद्ध को तुम, महावीर को , गौर से देखो ! या तो तुम्हारे चेहरे उन में प्र कट हुए हैं, या तुम्हारी आकांक्षा-ज्यादा से ज्यादा तुम्हारी आकांक्षाएं, अभीप्साएं, जै से तुम होना चाहोगे लेकिन तुमसे बाहर कुछ भी नहीं जा सकता तुम जो भी करो गे, तुम उसे घेर लोगे वह तुम्हारी प्रतिध्वनि होगी।

    - ओशो 

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