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    मुरगी के शोरबे का शोरबे का शोरबे का शोरबा - ओशो


     मुरगी के शोरबे का शोरबे का शोरबे का शोरबा - ओशो  

    मैंने सुना है, कि मुल्ला नसरुद्दीन को किसी ग्रामीण परिचित ने, किसान ने गांव से एक मुर्गी भेज दी भेंट में| जो आदमी मुर्गी लेकर आया था, स्वभावत: नसरुद्दीन ने उसका काफी स्वागत किया। मुर्गी का शोरखा बनवाया। उसे शोरबा पिलाया। वह आ दमी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने जाकर गांव में खबर कर दी, आदमी बहुत अच्छा है। और अतिथि को तो बिलकुल देवता मानता है। फिर तो गांव से लोगों का आना शुरू हो गया। दूसरे ही दिन दूसरा आदमी मौजूद हो गया। नसरुद्दीन ने पूछा, आप कौन? उसने कहा, कि जिसने मुर्गी भेजी थी, उस का दूर का रिश्तेदार हूं। उसका भी नसरुद्दीन ने स्वागत किया। घर आया आदमी! f फर कितने ही दूर का रिश्तेदार हो, रिश्तेदार ही है उसी का, जिसने मुर्गी भेजी थी

            लेकिन फिर बात सीमा के बाहर होने लगी। रिश्तेदारों के रिश्तेदार आने लगे। रिश्ते दारों के रिश्तेदारों के मित्र आने लगे। रिश्तेदारों के रिश्तेदारों के मित्रों के मित्र आ ने लगे | पत्नी वेचैन हो गई। उसने कहा, यह मुर्गी तो एक अपशगुन सिद्ध हुई। हम इस इनकार ही कर देते। यह तो पूरा गांव चला आ रहा है। नसरुद्दीन ने बहुत सोचा। कुछ करना ही पड़ेगा। और दूसरे दिन सुबह फिर एक आदमी खड़ा है। आप क न हैं? उसने कहा, कि जिसने मुर्गी भेजी थी, उसके रिश्तेदारों के रिश्तेदारों के मि त्रों का मित्र हूं| नसरुद्दीन ने कहा, आइए | स्वागत है। लेकिन वह आदमी बड़ा हैरान हुआ, जब भोजन उसे कराया गया तो सिर्फ कुनकुना पानी था शोरवे के नाम पर। उस आदमी ने कहा, और सब तो ठीक है, लेकिन मैं ने बड़ी चर्चा सुनी थी आपके आतिथ्य की। और यह तो कुनकुना पानी है। नसरुद्दीन ने कहा, माफ करिए। कुनकुना पानी नहीं है। मुरगी के शोरबे का शोरवे का शोरखे का शोरबा है।

     - ओशो

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