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    जब सूरज उगेगा तो रात्रि एक क्षण भी ठहर न सकेगी- ओशो

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    जब सूरज उगेगा तो रात्रि एक क्षण भी ठहर न सकेगी- ओशो 

            सुवह हो गई सूरज उगा रात्रि भाग गई। रात्रि ने एक क्षण भी रुक कर चेप्टा नहीं की, कि थोड़े पैर जमा कर खड़ी रहे। रात ने यह भी न कहा, कि यह कैसा अन्याय है! सदा से मैं यहां हूं। और अचानक तुम आ गए आज? मेहमान की तरह ठीक, लेकिन मुझे घर से तो मत भगाओ। मैंने सुना है, बड़ी पुरानी कथा है, कि अंधेरे ने जाकर परमात्मा को कहा कि तुम्हारे सूरज को तुम रोक लो। सदा सदा से मुझे परेशान करता रहा है। मैंने इससे कभी कोई छेड़छाड़ नहीं की। ऐसा कभी कुछ मेरे ऊपर नहीं, कि मैंने इसे कभी सताया है  या परेशान किया है, या कोई दुख दिया। लेकिन मैं सो भी नहीं पाता विश्राम भी नहीं कर पाता और यह सूबह आ कर परेशान कर देता है। और फिर मुझे भगाता रहता है दिन भर।

            परमात्मा ने अंधेरे को कहा कि बात ठीक है, लेकिन तुम दोनों का साथ साथ मौजूद होना जरूरी है; तभी फैसला किया जा सकता है। क्योंकि सूरज की भी तो बात सु ननी पड़ेगी, वह क्या कहता है। रात की सुन ली, अंधेरे की सुन ली, सूरज की भी सुननी पड़ेगी। कहते हैं, इस बात को कई-कई कल्प, महाकल्प बीत गए, अंधेरा अब तक सूरज क से लेकर अदालत में मौजूद नहीं हो पाया। क्योंकि यह हो ही नहीं सकता। ये दोनों साथ नहीं हो सकते। इसलिए फैसला अटका है। फाईल में पड़ा है। वह कभी हल नह होगा। वह फाईल में ही रहेगा। वह फाईल दिल्ली की फाईल है। यह हो ही नहीं सकता। कैसे सूरज को अंधेरा लेकर मौजूद होगा? और स्वभावत: जब तक दोनों दल मौजूद न हों, दोनों पक्ष मौजूद न हों, परमात्मा भी कैसे निर्णय करे? सूरज से भ तो पूछना जरूरी है।

            ऐसी मैंने सुनी है अफवाह, कि उसने सूरज से कभी एकांत में पूछा, अदालत में मुक दमा है, कभी न कभी मौजूद होना ही पड़ेगा, लेकिन मैं तुमसे निजी एकांत में पूछ ता हूं, कि क्यों अंधेरे के पीछे पड़े हो? क्यों परेशान करते हो? सूरज ने कहा, कौन अंधेरा? मैं तो जानता भी नहीं। मेरा कभी मिलना नहीं हुआ। मेरी पहचान ही नह " है, किस अंधेरे की बात कर रहे हैं? मैंने कभी अंधेरे को देखा नहीं। सब जगह घू म आया हूं। अंधेरे से मेरी कोई मुलाकात न हुई। अगर आपकी मुलाकात कभी हो जाए, तो मुझे मिला देना।

    - ओशो 

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