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    अज्ञात, अविगत, जो पूर्ण है, समग्र है, परिपूर्ण है, अकल्प है, जो अद्वितीय है, बेजोड़ है, उसे देखा - ओशो

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    अज्ञात, अविगत, जो पूर्ण है, समग्र है, परिपूर्ण है, अकल्प है, जो अद्वितीय है, बेजोड़ है, उसे देखा - ओशो 

            अविगत अकल अनुपम देख्याजो कभी नहीं देखा था। जिसे कभी जाना न था। अज्ञात, अविगत, जो पूर्ण है, समग्र है, परिपूर्ण है, अकल्प है, जो अद्वितीय है, बेजोड़ है, उसे देखा। कहंता कहया न जाई अब उसे कहना बहुत मुश्किल है। क्योंकि उस जैसा कोई भी नहीं, जिससे तुलना हो सके। तुमको अगर मैं कहूं गुलाब के फूल के संबंध में कुछ। हो सकता है, तुमने गुलाव क । फूल न देखा हो, तो मैं किसी और फूल की तुलना कर सकता हूं। लेकिन तुमने फूल ही न देखें हों, तो फिर गुलाब के फूल को समझाना मुश्किल है। _हो सकता है, तुमने कभी शक्कर न चखी हो लेकिन गुड़ चखा हो, तो समझाया जा सकता है।, कि शक्कर गुड़ का ही शुद्धतम रूप है। लेकिन तुमने मिठास ही न जा नी हो, न शक्कर, न गुड़ न मधु, तुमने मिठास ही न जानी हो, तो फिर समझाना मुश्किल है। 

            परमात्मा अकेला है। जिन्होंने जाना, जाना; और नहीं जाना, नहीं जाना। दोनों के बीच सब सेतु टूट जाते हैं। भाषा कामन हीं आती। किस ढंग से समझाएं? कोई उपमा काम नहीं करती। कोई प्रतीक सार्थक नहीं मालूम होता। अविगत अकल अनुपम देख्या, कहंता कहया न जाई। सैन करे मन ही मन रहसे, गंगे जान मिठाई। गंगे ने मिठाई खा ली है। हाथ से सैन करता है। मन ही मन स्वाद लेता है। हाथ क [ इशारा करता है, कि गजब की चीज है। लेकिन सैन से कहीं मिठास का पता चल ता है? सभी संत सैन करते रहे हैं। इशारा करते हैं, भीतर स्वाद भरा है। सब तर फ से तुम्हें समझाते हैं। हर तरह से उपाय करते हैं, कि किसी तरह वात तुम तक पहुंच कर तुम्हारे कान में पड़ जाए। क्योंकि तुम भी तड़फ रहे हो उसी प्यास के लि ए| वही पानी तुम्हें भी चाहिए। और पानी किसी को मिल गया हो। वह इशारे कर ता है। गंगे के इशारे| स्वाद भीतर भरा है, तृप्ति भरपूर है। आकंठ पूरा हो गया है,

            लेकिन कैसे तुमसे कहे? सैन कर करे मन ही मन रहसे। लेकिन जो है वह तो भीतर रह जाता है। सैन में पहुंच नहीं पाता। उंगली में आ नहीं पाता स्वाद। अनूभव उंगली में उतर ही नहीं पात।

    - ओशो

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