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    कवीर जिस सुख की बात कर रहे हैं! वो आता है, और फिर कभी जाता नहीं - ओशो

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     कबीर जिस सुख की बात कर रहे हैं! वो आता है, और फिर कभी जाता नहीं - ओशो 

    न तो सुख मूल्यवान है तुम्हारा, न दुख मूल्यवान है तुम्हारा। तुमने बहुत ध्यान इन पर दिया, इसलिए तुम बुरी तरह उलझ गए हो। वे ध्यान देने योग्य भी नहीं है। उपेक्षा के अतिरिक्त उनके प्रति दूसरा भाव नहीं चाहिए। सूख आए तो उपेक्षा रखना, क्योंकि वह जाने ही वाला है। दुख आए तो उपेक्षा रखना, कि जानते हो कि कितनी देर टिकेगा! 

            कभी दुख सदा नहीं टिकता। तो फिर क्या इतनी परेशान होने की जरूरत है? रह लेने दो थोड़ी देर आ गया है पक्षी उड़कर तुम्हारे कमरे में , दुख का हो या सुख का क्षण भर फड़फड़ा एगा, दूसरी खिड़की से निकल जाएगा। कोई सदा रहने को नहीं है। एक खिड़की से प्रवेश कर जाता है पक्षी, क्षण भर फड़फड़ाता है, दूसरी खिड़की से निकल कर, अ नंत यात्रा पर निकल जाता है। तुम तो वह भवन हो, जहां पक्षी थोड़ी देर उड़ा-वह रिक्तता, वह खाली जगह; उसी ससे अपना तादात्म्य करो, तो तुम समझ पाओगे कवीर किस सुख की बात कर रहे हैं! जो आता है, और जाता नहीं। आया कि आया, फिर जाने का नाम नहीं लेता। वह कोई मेहमान नहीं है, वह तुम ही हो। वह कोई अतिथि नहीं है, वह स्वयं आतिथेय है| मेहमान नहीं, मेजवान | वह तुम ही हो । वह कोई किनारे पर आनेवाली तरंग नहीं, वह किनारा ही है।

     - ओशो 

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