Osho Hindi Pdf- Hari Bolo Hari हरि बोलौ हरि बोल
हरि बोलौ हरि बोल
हरि बोलौ हरि बोल
सुंदरदास के पदों पर दिनांक १ जून से १० जून, १९७८ तक हुए भगवान श्री रजनीश के दस अमृत प्रवचनों की प्रथम प्रवचनमाला।
आमुख संत सुंदरदास दादू कि शिष्य थे। भगवान श्री का कहना है कि दादू ने बहुत लोग चेताये। दादू महागुरुओं में एक हैं। जिसने व्यक्ति दादू से जागे उतने भारतीय संतों में किसी ने नहीं जागे।
सुंदरदास पर उनके बालपन में ही दादू की कृपा हुई। दादू का सुंदरदास के गांव धौंसा में आना हुआ। सुंदरदास ने उस अपूर्व क्षण का जिक्र इन शब्दों में किया है--
दादू जी जब धौंसा आये बालपन हम दरसन पाये।
तिनके चरननि नायौ माथा उन दीयो मेरे सिर हाथा।
यह क्रांति का क्षण जब सुंदर के जीवन में आया तब वे सात वर्ष के ही थे। सात वर्ष! लोग हैं कि सत्तर वर्ष के हो जाते हैं तो भी संन्यासी नहीं होते। निश्चित ही अपूर्व प्रतिभा रही होगी; जो पत्थरों के बीच रोशन दीये की तरह मालूम पड़ रहा होगा।
सुंदरदास ने कहा है--
सुंदर सतगुरु आपनें, किया अनुग्रह आइ।
मोह-निसा में सोवते, हमको लिया जगाइ।।
दादू ने देख ली होगी झलक। उठा लिया इस बच्चे को हीरे की तरह। और हीरे की तरह ही सुंदर को सम्हाला। इसलिए "सुंदर' नाम दिया उसे। सुंदर ही रहा होगा बच्चा।
एक ही सौंदर्य है इस जगत में--परमात्मा की तलाश का सौंदर्य।
एक प्रसाद है इस जगत में--परमात्मा को पाने की आकांक्षा का प्रसाद।
धन्यभागी हैं वे--वे ही केवल सुंदर हैं--जिनकी आखों में परमात्मा की छवि बसती है।
तुम्हारी आंखें सुंदर नहीं होती हैं।
तुम्हारी आंखों में कौन बसा है, उसमें सौंदर्य होता है।
तुम्हारा रूप-रंग सुंदर नहीं होता; तुम्हारे रूप-रंग में किसकी चाहत बसी है, वहीं सौंदर्य होता है।
और तुम्हें भी कभी-कभी लगा होगा कि परमात्मा की खोज में चलनेवाले आदमी में एक अपूर्व सौंदर्य प्रगट होने लगता है। उसके उठने-बैठने में, उसके बोलने में, उसके चुप होने में, उसकी आंख में, उसके हाथ के इशारों में--एक सौंदर्य प्रगट होने लगता है, जो इस जगत का नहीं है।
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