Osho Hindi Pdf- Jagat Taraiya जगत तरैया भोर की
जगत तरैया भोर की
पहला प्रवचन दिनांक ११ मार्च, १९७७,
श्री रजनीश आश्रम, पूना
हरि भजते लागे नहीं, काल-ज्याल दुख-झाल।
तातें राम संभालिए, दया छोड़ जगजाल।।१।।
जे जन हरि सुमिरन विमुख, तासूं मुखहू न बोल।
रामरूप में जो पडयो तासों अंतर खोल।।२।।
राम नाम के लेव ही, पातक झुरै अनेक।
रे नर हरि के नाम को, राखो मन में टेक।।३||
नारायन के नाम बिन, नर नर नर जा चित्त।
दीन भये विललात हैं, माया-बसि न थित्त।।४।।
प्रभु की दिशा में पहला कदम
जब तक न स्वयं ही तार सजें कुछ गाने को
कुछ नई तान सुरताल नया बन जाने को
छेड़े कोई भी लाख बार पर तारों पर
झनकार नहीं कोई होगी
जब तक न मधु पी करके दीवाना हो
मन में रह-रह कुछ उठता नहीं तराना हो
छेड़े कोई भी लाख बार पर भौंरों में
गुंजार नहीं कोई होगी
जब तक न स्वयं ही बेचैनी से उठे जाग
जब तक न स्वयं कुछ करने की जग जाए आग
उकसाए कोई लाख बार मुर्दा दिल में
ललकार नहीं कोई होगी।
जब तक न स्वयं ही तार सजें कुछ गाने को
कुछ नई तान सुरताल नया बन जाने को
छेड़े कोई भी लाख बार पर तारों पर
झनकार नहीं कोई होगी।
संत का अर्थ है, प्रभु ने जिसके तार छेड़े। संतत्व का अर्थ है, जिसकी वीणा अब सूनी नहीं; जिस पर प्रभु की अंगुलियां पड़ीं। संत का अर्थ है, जिस गीत को गाने को पैदा हुआ था व्यक्ति, वह गीत फूट पड़ा; जिस सुगंध को ले कर आया था फूल, वह सुगंध हवाओं में...................
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