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    Osho Hindi Pdf- Jeevan Rahashya जीवन रहस्य

    Osho Hindi Pdf- Jeevan Rahashya

    जीवन रहस्य

    पहला प्रवचन जीवन रहस्य करीब आ जाएं, जितने करीब होंगे, मुझे थोड़ा, धीमे बोलता हूं, इसलिए दिक्कत न होगी।
    आपने एक बढ़िया सवाल पूछा है, पूछा है कि ऐसी कोई लालच बताएं कि जिससे हम भगवान की तरफ चल पड़ें, ऐसा कोई प्रलोभन जिससे हमारा मन भगवत्-प्राप्ति में लग जाए।

    यह सवाल कीमती है और बहुत महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण इसलिए है कि जब तक किसी भी तरह का लालच हो, तब तक कोई भगवत्-प्राप्ति में नहीं लग सकता। चाहे वह लालच भगवत्-प्राप्ति का ही क्यों न हो।
    लालच से भरा हुआ चित्त ही अशांत होता है। जहां लालच है, वहां चित्त अशांत है। और जब तक चित्त अशांत है तब तक भगवान से क्या संबंध हो सकता है? लालच का मतलब क्या है? लालच का मतलब यह है कि जो मैं हूं, उससे तृप्ति नहीं; कुछ और होना चाहिए। फिर चाहे यह कुछ और होना धन का हो, स्वास्थ्य का हो, यश का हो, आनंद का हो, भगवान का हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

    लालच का मतलब है: एक टेंशन, एक तनाव। जो नहीं वह नहीं, जो होना चाहिए वह हो। और जो मैं हूं वह अभी हूं और जो होना चाहिए वह कल होगा। तो कल के लिए मैं खींचा हुआ हूं, तना हुआ हूं। यह तना हुआ चित्त ही लालच से भरा हुआ चित्त है। इसलिए सब तरह की ग्रीड, सब तरह का लोभ अशांति पैदा करेगा। और जहां अशांति है वहां भगवत्-प्राप्ति कैसे?

    अशांत चित्त का भगवान से संबंधित होने का कोई उपाय ही नहीं है। अशांति ही तो बाधा है। फिर हम पछते हैं कि कोई लालच? क्योंकि हमारा मन तो लालच को ही समझता है, एक ही भाषा समझता है, वह है लालच की भाषा। धन के लिए इसलिए दौड़ते हैं, यश के लिए इसलिए दौड़ते हैं। फिर इस सब से ऊब जाते हैं तो हम कहते हैं भगवान के लिए कैसे दौड़ें?

    यह थोड़ा समझ लेना चाहिए कि उसके लिए दौड़ना तो संभव है जो हमसे दूर है, लेकिन जो हमारे भीतर ही हो उसके लिए दौड़ना असंभव है। और अगर दौड़े तो चुक जाएंगे।

    तो कुछ चीजें ऐसी हैं जो दौड़ कर पाई जा सकती हैं। क्योंकि असल में वह हमारा स्वभाव नहीं है, हमसे अलग है। अगर धन पाना है तो बिना दौड़े नहीं मिल जाएगा। अगर यश पाना है तो दौड़ना पड़ेगा।

    अब यह बड़े मजे की बात है कि धन के संबंध में लालच स्वाभाविक है। क्योंकि बिना लालच के धन पाया भी नहीं जा सकता। क्योंकि बिना दौड़े धन कैसे आ जाएगा? धन कहीं और है, आप कहीं और हैं, दौड़ना पड़ेगा, दौड़ना पड़ेगा। तो शायद आप पहुंच जाएं, फिर भी जरूरी नहीं कि पहुंच जाएं।

    लेकिन परमात्मा कहीं दूर नहीं है, एक इंच का भी फासला होता तो थोड़ा दौड़ लेते। एक इंच का भी फासला नहीं है। हम वहीं खड़े हैं जहां परमात्मा है। हम वही हैं, वही हैं जो वह है, तो दौड़ेंगे कहां? खोजने कहां जाएंगे? जिसे खोया हो उसे खोज सकते हैं और जिसे खोया ही न हो, उसे खोजा तो भटक जाएंगे, सिर्फ परेशानी में पड़ जाएंगे।

    मैंने सुना है, एक आदमी ने शराब पी ली थी और वह रात बेहोश हो गया। आदत के वश अपने घर चला आया, पैर चले आए घर लेकिन बेहोश था घर पहचान नहीं सका। सीढ़ियों पर खड़े होकर पास-पड़ोस के लोगों से पूछने लगा कि मैं अपना घर भूल गया हूं, मेरा घर कहां है मुझे बता दो? लोगों ने कहा, यही तुम्हारा घर है। उसने कहा, मुझे भरमाओ मत, मुझे मेरे घर जाना है, मेरी बूढ़ी मां मेरा रास्ता देखती होगी। और कोई कृपा करो मुझे मेरे घर पहुंचा दो। शोरगुल सुन कर उसकी बूढ़ी मां भी उठ आई, दरवाजा खोल कर उसने देखा, उसका बेटा चिल्ला रहा है, रो रहा है कि मुझे मेरे घर पहुंचा दो। उसने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, बेटा, यह तेरा घर है और मैं तेरी मां है।
    उसने कहा, हे बुढ़िया, तेरे ही जैसी मेरी बूढ़ी मां है वह मेरा रास्ता देखती होगी। मुझे मेरे घर का रास्ता बता दो। पर ये सब लोग हंस रहे हैं, कोई मुझे घर का रास्ता नहीं बताता। मैं कहा जाऊं? मैं कैसे अपने घर को पाऊं? ।

    तब एक आदमी ने, जो उसके साथ ही शराब पी कर लौटा था, उसने कहा, ठहर, मैं बैलगाड़ी ले आता हूं, तुझे तेरे घर पहुंचा देता हूं। तो उस भीड़ में से लोगों ने कहा कि पागल इसकी बैलगाड़ी में मत बैठ जाना, नहीं तो घर से और दूर निकल.........

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