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    Osho Hindi Pdf- Kahe Kabir Diwana कहै कीर दिवाना

    Osho Hindi Pdf- Kahe Kabir Diwana

    कहै कीर दिवाना

    मैं ही इक बौराना 
    11 मई, 1975 प्रात; श्री ओशो आश्रम पूना 


    जब मैं भूला रे भाई, मेरे सत गुरु जुगत लखाई। 
    किरिया करम अचार में छाड़ा, छाड़ा तीरथ नहाना। 
    सगी दुनिया भई सुनारी, में ही इक बौराना|| 
    ना में जाने सेवा बंदरी ना मैं घंट बजाई। 
    ना में मूरत धरि सिंहासन ना मैं पुहुप चढ़ाई।। 
    ना हरित जव तप वीन्हे ना काया के जारे। 
    ना हरि नीझै धोति छाड़े ना पांचों के मारे।। 
    दाया रखि धरम को पाले जगसू रहे उदासी। 
    अपना सा जिव सबको जाने ताहि मिले अनिवासी।। 
    सहे कसबद बदा को त्यागे छाड़े गरब गुमाना। 
    सत्य नाम ताहि को मिलि है कहै कबीर दिवाना।।

    एक अंधेरी रात वी भांति है तुम्हारा जीवन, जहां सुरज वी किरण तो आना असंभ व है, मिट्टी के दिए वी छोड़ी सी लौ भी नहीं है। इतना ही होता तब भी दीक था, निरंतर अंधेरे में रहने के कारण तुमने अंधेरे को ही प्रकाश की समझ लिया है। औ र जब कोई प्रकाश से दूर हो और अंधेरे को ही प्रकाश समझ ले तो सानी यात्रा अ वरद्ध हो जाती है। इतना भी होश बना रहे कि मैं अंधकार में हूं, तो आदमी खोज ता है, तड़फता है प्रकाश के लिए, प्यास लेती है, टटोलता है, गिरता है, उठता है, मार्ग खोजता है, गुरु खोजता है, लेकिन जब कोई अंधकार को ही प्रकाश समझ ले तब सारी यात्रा समाप्त हो जाती है। मृत्यु को ही कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद हो गया। 

    एक बहुत पुरानी यूनानी कथा है। एक सम्राट को ज्योतिषियों ने कहा कि इस वर्ष पै दा होने वाले बच्चों में से कोई एक तेरे जीवन का घाती होगा। ऐसी बहूत कहानियां हैं संसार के सभी देशों में| कृष्ण के साथ भी ऐसी कहानी जोड़
    है और जीसस के साथ भी है कहानी जोड़ी है। लेकिन युनानी कहानी का कोई म कावला नहीं। सम्राट ने जितने बच्चे उस वर्ष पैदा हुए, सभी को कारागृह मग डाल दिया, मारा न हीं। क्योंकि सम्राट को लगा कि कोई एक इनमें से हत्या करेगा और सभी हत्या में करूं, यह महा-पातक हो जाएगा। छोटे-छोटे बच्चे बड़ी मजबूत जंजीरों में जीवन भर
    के लिए कोठरियों में डाल दिए गए। जंजीरों में जीवन भर के लिए कोठरियों में डा ल दिए गए। जंजीरों में बंधे-बंधे हुए ही वे बड़े हुए। उन्हें याद भी न रही कि की ऐसा भी कोई क्षण था जब जंजीरे उनके हाथ में न रही हों। जंजीरों को उन्होंने जीवन के अंग की तरह ही पाया और जाना। उन्हें याद भी तो नहीं हो सकती थी, कि कभी वे मुक्त थे| गुलामी ही जीवन थी, और इसीलिए उन्हें कभी गुलामी अखी नहीं। क्योकि तुलना हो तो तकलीफ होती है। तुलना का कोई...............


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