Osho Hindi Pdf- Kano Suni So कानो सुनी सो झूठ सब
कानो सुनी सो झूठ सब
सतगुरु किया सुजान
प्रवचन: १ दिनांक: ११.७.७७ श्री रजनीश आश्रम, पूना
जन दरिया हरि भक्ति की, गुरां बताई बाट।
भुला उजड़ जाए था, नरक पड़न के घाट।
नहिं था राम रहीम का, मैं मतिहीन अजान।
दरिया सुध-बुध ग्यान दे, सतगुरु किया सुजान।।
सतगुरु सब्दां मिट गया, दरिया संसय सोग।
औषध दे हरिनाम का तन मन किया निरोग।।
रंजी सास्तर ग्यान की, अंग रही लिपटाय।
सतगुरु एकहि सब्द से, दीन्ही तुरत उड़ाय।।
जैसे सतगुरु तुम करी, मुझसे कछू न होए।
विष-भांडे विष काढ़कर, दिया अमीरस मोए।
सब्द गहा सुख ऊपजा, गया अंदेसा मोहि।
सतगुरु ने किरपा करी, खिड़की दीन्हीं खोहि।।
पान बेल से बीछुडै, परदेसां रस देत।
जन दरिया हरिया रहै, उस हरी बेल के हेत।।
अथातो प्रेम जिज्ञासा! अब प्रेम की जिज्ञासा।
अब पुनः प्रेम की बात। दो ही बातें हैं परमात्मा की--ध्यान की या प्रेम की। दो ही मार्ग हैं--या तो शून्य हो जाओ या प्रेम में पूर्ण हो जाओ। या तो मिट जाओ समस्त-रूपेण, कोई अस्मिता न रह जाए, कोई विचार न रह जाए, कोई मन न बचे; या रंग लो अपने को सब भांति प्रेम में, रती भी बिना रंगी न रह जाए। तो या तो शून्य से कोई पहुंचता है सत्य तक, या प्रेम से। संत दरिया प्रेम की बात करेंगे। उन्होंने प्रेम से जाना। इसके पहले कि हम उनके वचनों में उतरें...अनूठे वचन हैं ये। और वचन हैं बिलकुल गैर-पढ़े लिखे आदमी के। दरिया को शब्द तो आता नहीं था; अति गरीब घर में पैदा हुए--धुनिया थे, मुसलमान थे। लेकिन बचपन से ही एक ही घुन थी कि कैसे प्रभु का रस बरसे, कैसे प्रार्थना पके। बहुत द्वार खटखटाए, न मालूम कितने मौलवियों, न मालूम कितने पंडितों के द्वार पर गए लेकिन सबको छूछे पाया। वहां बात तो बहुत थी, लेकिन दरिया जो खोज रहे थे, उसका कोई भी पता न था। वहां सिद्धांत बहुत थे, लेकिन दरिया को शास्त्र और सिद्धांत से कुछ लेना न था। वे तो उन आंखों की तलाश में थे जो परमात्मा की बन गई हो। वे तो उस हृदय की खोज में थे, जिसमें परमात्मा का सागर लहराने लगा हो। वे तो उस आदमी की छाया
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