• Latest Posts

    Osho Hindi Pdf- Karuna Aur Kranti करुणा और क्रांति

    Osho Hindi Pdf- Karuna Aur Kranti

    करुणा और क्रांति

    १ : करुणा के फूल

    मेरे प्रिय आत्मन्,
    एक पहाड़ी रास्ते पर सुबह से ही बड़ी भीड़ है। सूरज बाद में निकला है। उस रास्ते पर लोग पहले से निकल पड़े हैं। भीड़ बहुत है-सारा गांव, आसपास के छोटे गांव, पहाड़ी की तरफ भागे चले जाते हैं। लेकिन भीड़ बड़ी उदास है। कोई खुशी का त्यौहार नहीं मालूम पड़ रहा है। लोग आंखें नीचे झुकाये हुए हैं और लोगों के प्राणों पर बड़े पत्थर रखे हुए मालूम पड़ रहे हैं। इस भीड़ में तीन लोग और थे, जो अपने कंधों पर सूलियां लिये हुए थे। वह भीड़ ऊपर पहुंच गयी है। यह बड़े व्यंग्य की बात है कि किसी को अपनी सूली खुद ही ढोनी पड़े। वे सूलियां, खुद ही उन्हें ही गाड़नी पड़ी हैं! उन तीन लोगों ने अपनी-अपनी सूलियां गाड़ ली हैं।

    और उस उदास भीड़ में उन तीनों लोगों को सूली पर लटका दिया गया है। उनमें एक आदमी परिचित है, वह मरियम का बेटा है जीसस। लेकिन दो आदमी बिलकुल अनाम हैं, उनका कोई नाम पता नहीं है कि वे आदमी कौन हैं? कहते हैं कि वे दोनों चोर थे। दो चोरों और बीच में जीसस को तीनों को सूली पर लटका दिया गया है। उनके हाथों में कील ठोक दिये गये हैं। जीसस के सिर पर कांटों का ताज पहनाया हुआ है। और जीसस की आंखों में जब भी कोई झांकेगा तो उसे पता चलेगा कि जैसे दुख:पीड़ा और उदासी साकार हो गयी हो। यह घटना घटे बहुत दिन हो गये हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि यह घटना बड़ी सम-सामयिक है। बड़ी कंटम्प्रेरी है। 

    कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए, नाचते हुए; सोचने में भी कठिनाई होती है। ऐसा लगता है कि ऐसा आदमी शायद कभी न हुआ हो। तो यह भी हो सकता है कि भविष्य में भी कोई न हो, क्योंकि आदमी के होंठ गीत गाने भूल चुके हैं। और बांसुरी बजाने की तो बात ही नहीं है। तो कृष्ण बहुत काल्पनिक और स्वप्निल मालूम होते हैं। बुद्ध की शांत प्रतिमा भी ऐसी लगती है, जैसे हमारी आकांक्षा हो। लेकिन जीसस बहुत सम-सामयिक मालूम पड़ते हैं। ऐसा नहीं लगता कि दो हजार साल पहले एक आदमी को सूली लगी हो, ऐसा लगता है कि हमारे पड़ौस में यह आदमी अभी भी सूली पर लटका हुआ है। कुछ कारण है। जीसस की निकटता के पीछे कुछ कारण है। और वह यह है कि उस दिन एक आदमी सूली पर लटका था, आज पूरी मनुष्यता करीब-करीब धीरे-धीरे सूली पर लटक गयी है। कुछ सूलियां दिखाई पड़ती हैं, कुछ दिखायी नहीं पड़ती, अदृश्य हैं। दिखाई पड़ने वाली सूलियों से बचा भी जा सकता है, न दिखायी पड़ने वाली सूलियों से बचना भी बहुत मुश्किल है। और उस दिन सुबह जो हुआ था, उससे कुछ और बातें मेरे ख्याल में आती हैं। पहली बात तो मेरे ख्याल में वह आती है कि जीसस खुद अपनी सूली को लेकर उस पहाड़ी पर चढ़े, हममें से हर आदमी अपनी सूली को खुद ही लेकर चढ़ रहा है। हम सब अपनी सूलियों का खुद ही निर्माण करते हैं। फिर उन्हें खुद ढोते हैं जीवन भर और अंत में अपनी-अपनी सूलियों
    ......

    No comments