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    Osho Hindi Pdf- Kople Phir Phoot कॉपलें फिर फूट आई

    Osho Hindi Pdf- Kople Phir Phoot कॉपलें फिर फूट आई

    कॉपलें फिर फूट आई

    पहला प्रवचन:
    ३१ जुलाई, १९८६, ३. ३० अपराहन, सुमिला, जुहू, बंबई


    प्रश्न: भगवान, आप कैसे हैं?


    मैं तो वैसा ही हूं। और तुम भी वैसे ही हो। जो बदल जाता है वह हमारा असली चेहरा नहीं है। वह हमारी आत्मा नहीं है। जो नहीं बदलता, न जीवन में न मृत्यु में, वही हमारा यथार्थ है। हम लोगों से पूछते हैं, कैसे हो। नहीं पूछना चाहिए। क्योंकि हमने स्वीकार ही कर लिया पूछने में...बदलाहट को, परिवर्तन को, बचपन को, जवानी को, बुढापे को, जीवन को, मौत को। कुछ है तुम्हारे भीतर जिसका तुम्हें भी पता है। बचपन में भी यही था और नहीं जन्में थे तब भी यही था। गंगा में बहुत जल बहता गया लेकिन तुम किनारे खड़े हो और वही हो। तुम दिखाई भी न पड़ोगे कल तो कभी वही होगे। नए होंगे रूप, नयी आकृतियां, शायद तुम अपने को भी पहचान पाओ। नए हों नाम, नया होगा परिचय, नया होगा वेष, फिर भी मैं कहता हूं तुम वही होओगे। तुम सदा से वही हो और तुम सदा परिचय, नया होगा वेष, फिर भी मैं कहता हूं तुम वही होओगे। तुम सदा से वही हो और तुम सदा वही रहोगे। इस सदा सनातन, शाश्वत को चाहो तो ईश्वर कहो, चाहो तो तुम्हारी सत्ता कहो। इस पर बहुत लहरें आती और जाती है, पर समंदर वही है। बदलाहट झूठ है। 

    लेकिन हमने बदलाहट को सच माना हुआ है और उसे संसार बना लिया है। काश हम समझ सकें कि बदलाहट झूठ है तो चोर और साधु में कोई फर्क न रह जाए, क्योंकि दोनों के भीतर जो है वह न तो चोर है और न साधु है, तो हिंदू और मुसलमान में कोई फर्क न रह जाए। उनकी भाषाएं अलग होंगी लेकिन उनकी भाषाओं के भीतर छिपा एक साक्षी भी है। कृत्य अलग होंगे, लेकिन उन कृत्यों के पीछे छिपा भी कुछ है, जो सदा वही है। और उस सनातन की तलाश ही धर्म है। पूछना चाहिए लोगो से, बदले तो नहीं हो? मगर उलटा है संसार, उल्टे हैं उसके नियम, ऊलजलूल हैं उसकी बातों। और चूंकि भीड़ उनको मान कर चलती है, दूसरे भी उनको स्वीकार कर लेते हैं। अपने चेहरे को तुम देखते हो दर्पण में तो सोचते हो तुमने अपने को देख लिया। काश, इतना आसान होता तो सभी को आत्मदर्शन हो गया होता। सुनते हो अपना नमा तो सोचते हो तुम्हें अपना नाम पता है। बात इतनी सस्ती होती तो दुनिया मग धर्म की कोई जरूरत न थी। वह नाम तुम्हारा नहीं है, उधार है और बासा है। आए थे तुम बिना नाम के और जाओगे तुम बिना नाक के। हम जब मुर्दे को ले जाते हैं मरघट की तरफ तो कहते हैं: राम नाम सत्य है। उस आदमी का नाम जो मर गया कोई नहीं कहता और जिंदगी भर वही सच था, आज अचानक झूठ हो................


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