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    Osho Hindi Pdf- Kranti Sutra क्रांति सूत्र

    Osho Hindi Pdf- Kranti Sutra क्रांति सूत्र

    क्रांति सूत्र

    समय में जो कुछ भी है, सभी मरणधर्मा है। समय मृत्यू वी गति है, उसके ही चर णों का वह माप है। समय में दौड़ना मृत्यू में दौड़ना है और सभी वहीं दौड़े जाते हैं। मैं सभी को स्वयं मृत्यु के मुंह में दौड़ते देखता हूं। ठहरो और सोचो! आपके पैर आपको कहां लिए जा रहे हैं? आप उन्हें चला रहे हैं या कि वे ही आपको च ला रहे हैं। 

    प्रतिदिन ही कोई मृत्यु के मुंह में गिरता है और आप ऐसे खड़े रहते हैं जैसे यह दू र्भाग्य उस पर ही गिरने को था। आप दर्शक बने रहते हैं। यदि आपके पास सत्य को देखने की आंखें हों तो उसवी मृत्यू में अपनी भी मृत्यु दिखाई पड़ती है। वहीं आपके साथ भी होने को है-वस्तुत: हो ही रहा है। आप रोज-रोज मर ही रहे हैं | जिसे आपने जीवन समझ रखा है, वह क्रमिक मृत्यु है। हम सब धीरे-धीरे मरते रहते हैं। मरण वी यह प्रक्रिया इनती धीमी है कि जब तक कि वह अपनी पूर्णता नहीं पा लेती तब तक प्रकट ही नहीं होती। उसे देखने के लिए विचार वी सूक्ष्म दृष्टि चाहिए। 

    चर्मचक्षुओं से तो केवल दूसरों की मृत्यु का दर्शन होता है किंतू विचार-चक्षु स्वयं को मृत्यु से घिरी और मृत्योन्मुख स्थिति को भी स्पष्ट कर देते हैं। स्वयं को इस सं कट वी स्थिति में घिरा जानकर ही जीवन को पाने की आकांक्षा का उद्भव होता है। जैसे कोई जाने कि वह जिस घर में बैठा है उसमें आग लगी हुई है और फिर उस घर के बाहर भागे, वैसे ही स्वयं के गृह को मृत्यु की लपटों से घिरा जान हमारे भीतर भी जीवन को पाने वी तीव्र और उत्कट अभीप्सा पैदा होती है। इस अभीप्सा से बड़ा और कोई सौभाग्य नहीं, क्योंकि वही जीवन के उत्तरोत्तर गहरे स तरों में प्रवेश दिलाती है। 

    क्या आपके भीतर ऐसी कोई प्यास है? क्या आपके प्राण ज्ञात के ऊपर अज्ञात को पाने को आकुल हुए हैं? यदि नहीं, तो समझें कि आपकी आंखें बंद हैं और आप अंधे बने हुए हैं। यह अंधा पन मृत्यु के अतिरिक्त और कहीं नहीं ले जा सकता है। जीवन तक पहुंचने के लिए आंखें चाहिए। उमंग रहते चेत जाना आवश्यक है। फिर पीछे से कुछ भी नहीं होता। आंखें खोलें और देखें तो चारों ओर मृत्यु दिखाई पड़ेगी। समय में, संसार में मृत्यु ही है। लेकिन समय के संसार के बाहर स्वयं में अमृत भी है। तथाकथित जीवन को जो मृत्यु की भांति जान लेता है, उसकी दृष्टि सहज ही स्वयं में छिपे अमृत क ी ओर उठने लगती है। जो उस अमृत को पा लेता है, जी लेता है, उसे फिर कहीं भी मृत्यु नहीं रह जात ी है। फिर बाहर भी मृत्यु नहीं है। मृत्यू भ्रम है और जीवन सत्य है।


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