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    Osho Hindi Pdf- Krishna Smrati कृष्ण स्मृति

    Osho Hindi Pdf- Krishna Smrati कृष्ण स्मृति

    कृष्ण स्मृति

    कृष्ण-स्मृति ओशो द्वारा कृष्ण के बहु-आयामी व्यक्तित्व पर दी गई 21 वार्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो के साक्षित्व में संन्यास ने नए शिखरों को छूने के लिए उत्प्रेरणा ली और 'नव संन्यास अंतर्राष्ट्रीय वी संन्यास-रीक्षा का सूत्रपात हुआ।


    भूमिका 
    सुप्रसिद्ध कवि एवं लेखक डा.दामोदर खड़से एम.ए.,एम.एड,एच.डी. 
    कृष्ण स्मृति होरे जो कभी परखे ही न गए 

    ओशो
    पूर्णता का नाम कृष्ण

    जीवन एक विशाल कैनवास है, जिसमें क्षण-क्षण भावों वी कूची से अनेकानेक रंग मिल-जुल कर सुख-दुख के चित्र उभारते हैं। मनुष्य सदियों से चिर आनंद वी खोज में अपने पल-पल उन चित्रों की बेहतरी के लिए उठाता है। ये चित्र हजारों वर्षों से मानव-संस्कृति के अंग बन चुके हैं। किसी एक के नाम का उच्चारण करते ही प्रतिकृति हंसी-मुरकारी उदित हो उठती है। आदिकाल से मनुष्य किसी चित्र को अपने मन में बसाकर कभी पूजा, तो की आराधना, तो कभी चिंतन-मनन से गुजरता हुआ भ्यान की अवस्था तक पहुंचता रहा है। इतिहास में, पुराणों में ऐसे कई चित्र हैं, जो सदियों से मानव संस्कृति को प्रभावित करते रहे हैं। महातीर, क्राइस्ट, बुद्ध, राम ने मानव-जाति को गहरे छुआ है। इन सबवी बातें अलग-अलग है। कृष्ण ने इन सबके रूपों-गुणों को अपने आपमें समाहित किया है। 

    कृष्ण एक ऐसा नाम है, जिसने जीवन को पूर्णता गरी। एक ओर नाचना-गाना, रास-हीला तो दूसरी ओर दृद्ध और राजनीति, सामान्यतः परस्पर विरोधी बातों को अपने में समेटकर आनंदित हो मरली बजाने जैसी सहज क्रियाओं से जडे काण सचमच चौंकानेवाले चरित्र हैं। ऐसे चरित्र को रेखांकित करना कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। व्याख्याएं कभी-कभी दिशाएं मोड़ देती हैं, कभी-कभी भटका भी देती है। ओशो ने कृष्ण को अपनी दृष्टि से हमारे सामने रखा है, अपनी दार्शनिक और चिंतनशैल पारदर्शी दृष्टि से हम तक इस पुस्तक के माध्यम से पहुंचाया है। व्यक्तित्व जब बड़ा हो, विशाल हो तब मूर्ति बनाना आसान नहीं। सिर्फ बाहरी छवि उभारना पर्याप्त नहीं होता। व्यक्तित्व के सभी पहलू भी उभरने चाहिए। श्रेष्ठ कलाकार वही है जो मूर्ति में ऐसी बातों को भी उभार सके जो सामान्य आंखें देख नहीं पाती। 

    कृष्ण भारतीय जन-मानस के लिए नए नहीं है। कृष्ण वी छबि, मद्रा परिचित है। चाहे यह बाल्यकाल की छवि सूरदास वी हो या महाभारत की विभिन्न मुद्राएं हों या विभिन्न कवियों के कृष्ण हों, लोककथाओं या आख्यायिकाओं के कृष्ण हों-चिर-परिचित हैं। कृष्ण का चित्र स्टील फोटोशापी वी तरह हमारे मन में रच-बस गया है। परंतु, ओशो ने इस पुस्तक वी विचार-शृंखला में कृष्ण का मात्र फेटो नहीं सींचा है बल्कि एक सये हुए चिंतक-कलाकार वी तरह अपने विचार-रंगों से कृष्ण के जीवन के उन पहलुओं को छुआ है, आकार दिया है, जो कैमरे वी आँख से नहीं देखे जा सकते। सिर्फ कूरी के स्पर्श से उभारे जा सकते हैं। कैमरा सिर्फ मूर्त आकृतियों की प्रतिकृति देता है पर कलाकार वी कूती अमूर्तता को रेखांकित करती है। कृष्ण स्मृति ऐसी ही अनदेखी, अनजानी अमूर्त छटाओं का एक संपूर्ण संकलन है, जो ओशो वी एक ली-प्रवचन-शृंखला से उभरा है। श्रोताओं की जिज्ञासाओं, कुतूहलों और कृष्ण व्यक्तित्व से..................


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