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    Osho Hindi Pdf- Shunya Ka Darshan शून्य का दर्शन

    Osho Hindi Pdf- Shunya Ka Darshan

    शून्य का दर्शन

    दृष्टि-परिवर्तन मेरे प्रिय आत्मन, धर्म के संबंध में कुछ आपसे कहूं, इससे पहले कि धर्म के संबंध में कुछ बात हो, य ह पूछ लेना जरूरी है-धर्म के संबंध में विचार करने के पहले यह विचार कर लेना जरूरी है कि धर्म वी मनुष्य को आवश्यकता क्या है? जरूरत क्या है, हम क्यों धर्म में उत्सुक हों, क्यों हमानी जिज्ञासा धार्मिक बने? क्या यह नहीं हो सकता कि धर्म के विना मनुष्य जी सके? क्या धर्म में कुछ ऐसी बात है जिसके बिना मनुष्य का ज 'निा असंभव होगा? कुछ लोग हैं, जो मानते हैं धर्म बिलकुल भी आवश्यक नहीं है। कुछ लोग हैं जो मा नते हैं, धर्म व्यर्थ ही, निरर्थक ही मनुष्य के ऊपर थोपी हुई बात है। मैंने कहा धर्म वी क्या जरूरत है? 

    धर्म का प्रयोजन क्या है? मैं सोचता था कि क्या आपसे कहूं? मुझे स्मरण आया कि धर्म के संबंध में कुछ भी कहने के पहले यह विचार करना औ र यह जिज्ञासा करनी, इस संबंध में चिंतन और मनन करना उपयोगी होगा, कि क्य । मनुष्य धर्म के बिना संभव नहीं है? क्या मनुष्य जीवन धर्म के अभाव में संभव नह है? क्या हम धर्म को छोड़ दें तो मनुष्य के भीतर कुछ न हो जाएगा? इस संबंध में दुनिया के अलग-अलग कोने में, मनुष्य के इतिहास के अलग-अलग स मय में, कुछ लोग हुए हैं जो मानते हैं धर्म अनावश्यक हैं। 

    जो मानते हैं कि अगर ध म छोड़ दिया जाए, अगर धर्म नष्ट हो जाए तो मनुष्य का न कुछ बिगड़ेगा, न कोई हानि होगी। न मनुष्य के भीतर किसी भांति का कोई ऐसा परिवर्तन होगा। ये जो f वचारक हुए हैं, ये जो चिंतक हुए हैं, ऐसी जिनवी धारणा है कि धर्म के बिना मनुः य का जीवन संभव है, जिनवी ऐसी मान्यता है कि धर्म के बिना मनुष्य का जीवन संभव है, उनवी मान्यता पर इस सदी ने प्रयोग करके देख लिया है। जिनकी मान्यत । है कि मनुष्य का धर्म से सारा संबंध टूट जाए तो भी कोई हानि नहीं होरी, उन्हों ने अपना प्रयोग करके देख लिया है। उनके प्रयोग का यह परिणाम हुआ है। उनके विचार का, उनके दर्शन का और उन वी धारणाओं का यह परिणाम हुआ है, कि मनुष्य जितना दुसी आज है उतना दुसरी कभी भी नहीं था। और मुझे कहने वी आज्ञा दें कि पशु-पक्षी भी इतने दुखी नहीं हैं, जितना दुसी मनुष्य है। पेड़-पौधे भी इतने दुखी नहीं हैं जितना दुखी मनुष्य है। 

    जस मनुष्य को हम मानते रहे हैं कि वह प्रकृति का, विश्व का, जगत का श्रेष्ठतम विकास है। अगर वह यही मनुष्य है जो हमें दिखाई पड़ रहा है-इस मनुष्य से एक पौधा होना बेहतर है। एक पशु, एक पक्षी होना बेहतर है। इस मनुष्य में क्या दिखाई पड़ता है जिसके मुकाबले हम पशू होने का चुनाव न कर लें। कौन सी आंतरिक झलक दिखाई पड़ती है| कौन सा बीज दिखाई पड़ता है इसके हृदय में| कौन सा संगीत दिखाई पड़ता इसके राणों में सम्मिलित होता हुआ। कछ भी दिखाई नहीं पड़ता। और मैं आपसे कहूं कि मनुष्य को छोड़ दें तो यह सानी । कृति बहुत संगीत से, बहुत सौंदर्य से, भी हुई ..........

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