काम-ऊर्जा का रूपांतरण—संभोग में साक्षित्व से - ओशो
काम-ऊर्जा का रूपांतरण—संभोग में साक्षित्व से - ओशो
कामवासना स्वाभाविक है। उससे लड़ना नहीं, अन्यथा उसके विकृत-रूप चित्त को घेर लेंगे। काम (सेक्स) को समझो और काम-कृत्य (सेक्स-ऐक्ट) को भी ध्यान का विषय बनाओ। काम में, संभोग में भी साक्षी (विटनेस) बनो। संभोग में साक्षी-भाव के जुड़ते ही काम-ऊर्जा (सेक्स-इनर्जी) का रूपांतरण प्रारंभ हो जाता है। वह रूपांतरण ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य काम का विरोध नहीं-काम-ऊर्जा का ही ऊर्ध्वगमन है। जीवन में जो भी है उसे मित्रता से
और अनुग्रह से स्वीकार करो। शत्रुता का भाव अधार्मिक है। स्वीकार से परिवर्तन का मार्ग सहज ही खुलता है। शक्ति तो सदा ही तटस्थ है। वह न बुरी है, न अच्छी। शुभ या अशुभ उससे सीधे नहीं वरन उसके उपयोग से ही जुड़े हैं।
- ओशो
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