विचारों के पतझड़ - ओशो
विचारों के पतझड़ - ओशो
विचारों के प्रवाह में बहना भर नहीं। बस जागे रहना। जानना स्वयं को पृथक और अन्य। दूर और मात्र द्रष्टा। जैसे राह पर चलते लोगों की भीड़ देखते हैं, ऐसे ही विचारों की भीड़ को देखना। जैसे पतझड़ में सूखे पत्तों को चारों ओर उड़ते देखते हैं, वैसे ही विचारों के पत्तों को उड़ते देखना। न उनके कर्ता बनना। न उनके भोक्ता। फिर शेष सब अपने आप हो जाएगा। उस शेष को ही मैं ध्यान (मेडीटेशन) कहता हूं।
- ओशो
No comments