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    आने वाले भविष्य की जीवन व्यवस्था है मानववाद - ओशो

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    आने वाले भविष्य की जीवन व्यवस्था है मानववाद - ओशो 

    अगर संपदा पैदा करनी है तो उचित है कि बंबई में अगर कारें बनाई जाती हैं तो पूरा बंबई सिर्फ कारें बनाए। सारे हिंदुस्तान में पच्चीस जगह कार बनाने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि वह सिर्फ अपव्यय है शक्ति का, और संपदा कम पैदा होगी उससे। एक ही नगर सारी कारें बनाए। सच तो यह है कि दुनिया में एक ही नगर सारी दुनिया के लिए कारें बनाए, यह उचित होगा, तो उस गांव में कुशलता पैदा होगी, इफिशियंसी पैदा होगी। उस गांव में पैदाइश से ही बच्चे कुशल पैदा होंगे उस दिशा में, उस सारे गांव की हवा एक ही उत्पादन की होगी। वह सारी दुनिया को कारें दे।

    निश्चित ही वह गांव स्वावलंबी नहीं हो सकता, क्योंकि वह सिर्फ कारें बनाएगा। गेहूं उसे किसी और से लेना पड़ेगा, कपड़े किसी और से लेने पड़ेंगे, फर्नीचर किसी और गांव से खरीदना पड़ेगा। लेकिन उस दिन दुनिया में इतनी संपदा पैदा हो जाएगी, जिस दिन हम वैज्ञानिक विधि से और तकनीक के विकास से और स्वावलंबन की नासमझी से भरी बात से मुक्त हो जाएंगे। इतनी संपदा पैदा हो सकती है कि दुनिया में किसी आदमी के दरिद्र होने का कोई कारण नहीं। दरिद्रता मिटानी है और समृद्धि बढ़ानी है। और यह समृद्धि उतनी ही बढ़ सकती है जितनी एक - एक व्यक्ति को अधिकतम स्वतंत्रता होगी। स्वतंत्रता व्यक्ति के भीतर जो छिपी हुई शक्तियां हैं, उसे संघर्ष ने रद्द कर दी हैं। उसे विकासमान करती हैं, स्वतंत्रता उसे मौका देती है कि वह जो हो सकता है, होने की चेष्टा करे ।

    स्वतंत्रता पूरी चाहिए और दरिद्रता को मिटाने का एक दर्शन चाहिए । इस देश को तो बहुत जोर से, नहीं तो हम हो सकता है कि हम हजार साल की गुलामी से मुक्त हुए हैं। और कोई तीन-चार हजार वर्ष की गलत फिलासफी हमारी छाती पर सवार है। गलत जीवन-दर्शन हमारे ऊपर सवार है। और एक नई दुर्घटना हमारे ऊपर आ रही, वह समाजवादी चिंतन है। तो हम दरिद्र ही रह जाएं। दरिद्रता को बांट लें और बड़े खुश हों। और इस दरिद्र समाज में फिर हमें वही सब उपद्रव, सारे आघात और सारी संभावनाएं भविष्य में झेलनी पड़ें, जिनको हम अतीत में झेलते रहे हैं।

    तो मुझे लगता है कि समाजवाद नहीं है आने वाले भविष्य की जीवन व्यवस्था । आने वाले भविष्य की जीवन व्यवस्था है मानववाद। और मानववाद पूंजीवाद के विरोध में आने वाली व्यवस्था नहीं है, पूंजीवाद का ही सुसंगत विकास है। जहां पूंजीवाद की बीमारियां क्रमशः विदा हो जाएं और पूंजीवाद में जो भी श्रेष्ठ था वह क्रमशः उन्नत होता चला जाए, और इतनी संपदा पैदा हो सके कि दरिद्र न रहे। दरिद्र इसलिए नहीं है कि शोषण है, दरिद्र इसलिए है कि संपदा पैदा करने के हमारे उपाय क्षीण और कम हैं। संपदा हम जितनी पैदा कर सकेंगे उतना दरिद्र विदा होगा । और मुझे यह भी नहीं दिखाई पड़ता कि क्लासलेस सोसाइटी या वर्ग-विहीन समाज कभी भी निर्मित हो सकता है, या होना चाहिए या उचित।

    नहीं, वर्ग-विहीन समाज कभी भी निर्मित नहीं हो सकता । संपदा अधिक होगी, वर्गों के फासले कम होंगे। संपदा इतनी बहुल हो सकती है कि वर्गों के फासलों का कोई वास्तविक अर्थ न रह जाए। लेकिन अगर हमने वर्ग-विहीन व्यवस्था बनाने की चेष्टा की, तो उस व्यवस्था में हमें स्वतंत्रता खो देना पड़े। और जबरदस्ती वर्गों को तोड़ने का उपाय करना पड़े। और वर्गों को तोड़ने की चेष्टा में एक नया वर्ग पैदा हो जाएगा जो तोड़ने वाला होगा । तो पुराने वर्ग नई शक्ल ले लेंगे। वहां पूंजीपति था यहां मजदूर था। फिर यहां मजदूर होगा, सामान्य जनता होगी, और मैनेजर होगा, और व्यवस्थापक होगा और नया वर्ग खड़ा हो जाएगा।

     - ओशो 

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