अवलोकन—वृत्तियों की उत्पत्ति, विकास व विसर्जन का - ओशो
अवलोकन—वृत्तियों की उत्पत्ति, विकास व विसर्जन का - ओशो
भीतर की आवाज पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दो। उसे सुनो एकाग्र होकर। उसके द्वारा साक्षी जन्म लेना चाह रहा है। क्रोध हो कि प्रेम—जैसे ही भीतर से कोई कहे— 'देख ले। यह तेरा क्रोध!— वैसे ही शांत-एकाग्रता से देखने में लग जाना। निश्चय ही, देखते ही वृत्ति विलीन हो जाएगी। तब वृत्ति को विलीन होते देखना। विलीन हो गया देखना। वृत्ति का उठना, फैलना, विलीन होना, विलीन हो जाना—जब चारों स्थितियां समग्ररूपेण देख ली जाती हैं तब ही वृत्तियों का रूपांतरण (ट्रांसफोर्मेशन) होता है। और चित्तवृत्तियों का रूपांतरण ही निरोध है। और ऐसे निरोध को ही पतंजलि ने योग कहा है। योग द्वार है उसका जो कि चित्त के पार है। और जो चित्त के पार है वही शाश्वत है, वही सत्य है।
- ओशो
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