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    पूंजीवाद ने संपत्ति को पैदा करने के उपाय खोजे हैं - ओशो

     

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    पूंजीवाद ने संपत्ति को पैदा करने के उपाय खोजे हैं - ओशो 


    पुराने धार्मिक लोगों ने, दरिद्रता का बड़ा गुणगान किया था। और गांधी तक, वेद से लेकर गांधी तक दरिद्रता को 'बहुत आदर दिया गया। और गांधी भी दरिद्र नारायण कहते थे। और जिसको आप नारायण कहेंगे उसको मिटाना बहुत मुश्किल है। जिसको भगवान मान लेंगे उसको कैसे मिटाइएगा ? दरिद्रता एक बीमारी है, एक महामारी है। दरिद्र नारायण नहीं हैं। अगर दरिद्र नारायण तो फिर हैजा नारायण और मलेरिया नारायण भी हमको खोजने पड़ेंगे। लेकिन पिछले पांच हजार वर्षों में, दरिद्रता को आदर दिया गया और उस आदर देने के कारण थे।

    दरिद्रता मिटाने का कोई उपाय नहीं था और दरिद्र को संतोष देने के सिवाय कोई चारा नहीं था कि दरिद्रता भी बड़ी बहुमूल्य है, एक आध्यात्मिक मूल्य है उसका। तो दरिद्रता को एक आदर दिया गया। धीरे-धीरे दरिद्र की संख्या जागरूक हुई, बड़ी हुई। सारे जगत में दरिद्र का बोध जगा, शिक्षा आई, समझ आई और साथ में एक खयाल आया जो कि बिलकुल गलत खयाल है – एक खयाल आया कि दरिद्र आदमी इसलिए दरिद्र है कि कुछ संपत्तिशाली लोगों ने उससे संपत्ति छीन ली, हालांकि यह किसी ने नहीं पूछा कि दरिद्र के पास संपत्ति थी कब जो छीनी जा सके ?

    समृद्धशाली के पास जो संपत्ति है वह दरिद्र से छीन कर नहीं पाई गई, दरिद्र के पास संपत्ति कभी थी ही नहीं, बल्कि दरिद्र के पास जो कुछ दिखाई पड़ता है वह संपत्तिशाली के साथ उसने श्रम जो थोड़ा-सा किया उसके कारण उसके पास है।

    इंग्लैंड में चाइल्ड लेबर के दिन थे । छोटे बच्चे से अठारह अठारह घंटे काम लेते थे । बुरा था यह कि छोटे बच्चों से अठारह घंटा काम लिया जाए। और हम आज गाली देंगे, अपराध मानेंगे इसको कि छोटे बच्चों से बारह घंटे, अठारह घंटे काम लिया जाए। तो पूंजीवाद पर एक कलंक का टीका लगा, लेकिन किसी ने नहीं पूछा कि अगर उन बच्चों को अठारह घंटे काम नहीं दिया जाता तो वे जिंदा रहते ? दो ही विकल्प थे या तो वह अठारह घंटे उनको काम मिले, तो वे जिंदा रहते थे या काम न मिले तो वे मरते थे। एक बात हमने देखी कि उनसे अठारह घंटे काम लिया जा रहा था लेकिन दूसरी बात हमने नहीं देखी कि अठारह घंटे काम लिए जाने की वजह से वे जिंदा रह सके।

    वे बच्चे उसके दो सौ साल पहले जिंदा नहीं रहते थे । हजार साल पहले जिंदा नहीं रह सकते थे । काम लिया गया ह बुरा था, लेकिन काम लेकर ही उनको जिंदगी मिली उसका कोई खयाल नहीं । निश्चित ही एक दुनिया आनी चाहिए कि बच्चों से इतना काम न लिया जा सके। यह जो आज दरिद्र का इतना बड़ा वर्ग सारी दुनिया में दिखाई पड़ता है, इसके पास से संपत्ति छीनी नहीं गई है, इसके पास संपत्ति कभी थी ही नहीं । संपत्ति पैदा की गई है। संपत्ति किसी से छीनी नहीं गई। पूंजीवाद ने संपत्ति को पैदा करने के उपाय खोजे हैं।

    पहली दफे डिवाइसिज खोजी हैं कि संपत्ति कैसे पैदा हो। और संपत्ति जब पैदा हो गई है तो खयाल में आता है कि वह किसी से छीन ली गई है। वह किसी से छीनी नहीं गई है। दुनिया सदा दरिद्र थी। पहली दफा इधर दो सौ वर्षों में दुनिया के पास संपदा दिखाई पड़ती है। संपदा कभी भी नहीं थी, यह दुनिया में कभी भी नहीं थी । संपदा और भी पैदा की जा सकती है। जि मार्गों से इतनी संपदा पैदा की गई, अगर उन मार्गों को और बलिष्ट और पुष्ट और सहयोग दिया जाए तो संपदा और भी पैदा की जा सकती है। संपदा इतनी पैदा की जा सकती है कि एक भी आदमी दरिद्र न रह जाए।

     - ओशो 

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