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    कुछ भी हो ध्यान को नहीं रोकना - ओशो

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    कुछ भी हो ध्यान को नहीं रोकना - ओशो 

    ध्यान में और भी शक्ति लगाओ। ध्यान के अतिरिक्त शेष समय में ध्यान की स्मृति (रिमेंबरिंग) बनाए रखो। जब भी स्मरण आए—क्षणभर को तत्काल भीतर डुबकी ले लो। मस्तिष्क में शीतलता और भी बढ़ेगी। उससे घबराना मत—बिलकुल बर्फ जमी हुई मालूम होने लगे तो भी नहीं। रीढ़ में संवेदना गहरी होगी और कभी-कभी अनायास कहीं-कहीं दर्द भी उभरेगा। उसे साक्षी-भाव से देखते रहना है। वह आएगा और अपना काम करके विदा हो जाएगा। नए चक्र सक्रिय होते हैं तो दर्द होता ही है। और कुछ भी हो तो ध्यान को नहीं रोकना है। जो भी ध्यान से पैदा होता है, वह ध्यान से ही विदा हो जाता है।

     - ओशो 

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