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    पूंजीवाद के कारण दरिद्रता पैदा हुई, यह खयाल बुनियादी रूप से गलत है - ओशो

     

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    पूंजीवाद के कारण दरिद्रता पैदा हुई, यह खयाल बुनियादी रूप से गलत है - ओशो 


    कौन-सा तत्व है जो पूंजीवाद में आज पीड़ा का कारण हो गया? ऐसा खयाल है कि पूंजीवाद के कारण दरिद्रता पैदा हुई, हालांकि यह खयाल बुनियादी रूप से गलत है। पूंजीवाद नहीं था तब दुनिया और भी दरिद्र थी। और जिनको आज हम दरिद्र कहते हैं, ये तो जिंदा भी नहीं रह सकते थे पूंजीवाद के पहले की दुनिया में, ये तो कभी के मर गए होते। जिनको हम आज पीड़ित कहते हैं, एक्सप्लाइटिड कहते हैं, शोषित कहते हैं ये तो जिंदा भी नहीं रह सकते थे। शायद आपको खयाल भी न हो कि हजारों साल तक दुनिया की आबादी दो करोड़ से आगे नहीं बढ़ सकी, सारी दुनिया की आबादी । बढ़ ही नहीं सकती थी।

    पहली बार पूंजीवादी श्रम ने, पूंजीवादी चिंतन ने, पूंजीवादी संपदा को पैदा करने की तीव्र चेष्टा ने इतनी संपदा उत्पन्न की कि दुनिया की आबादी बढ़ सकी । और इतनी शीघ्रता से बढ़ सकी कि आज दूसरा सवाल हमारे सामने खड़ा हो गया कि वह आबादी कम कैसे हो? दुनिया में आबादी का सवाल कभी भी नहीं था। बुद्ध के जमाने में दुनिया की आबादी दो करोड़ थी और वह हजारों साल से उतनी थी । और वह उसके बाद भी सैकड़ों वर्ष तक उतनी ही रही। वह बढ़ नहीं सकती थी क्योंकि इतने बच्चे पैदा होते थे, उनके लिए भोजन नहीं जुटाया जा सकता था, न कपड़े जुटाए जा सकते थे, न प्राण जुटाया जा सकता था। वे खत्म हो जाते थे।

    पहली बार जो आज हमें शोषित दिखाई पड़ रहा है । वह बच सका है इसलिए कि संपदा पैदा हुई है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह शोषित बना रहे और दुखी बना रहे और पीड़ित बना रहे। संपदा और पैदा की जा सकती है और उसकी दरिद्रता मिटाई जा सकती है। लेकिन एक दृष्टि पैदा हो गई कि संपदा को वितरित करना है और वितरण से बीमारी खत्म हो जाएगी। वितरण से सब दरिद्र हो जाएंगे। बीमारी खत्म नहीं होती है।

    और संपदा पैदा की जानी चाहिए, कि थोड़े लोगों के पास संपदा है, इतनी संपदा पैदा हो कि धीरे-धीरे अधिक लोगों के पास हो और फिर इतनी संपदा पैदा हो कि वह सब लोगों के पास पहुंच सके। मानववादी समाज संपत्तिशाली लोगों का समाज होगा। जहां जो कल दरिद्र थे वे भी धीरे-धीरे संपत्तिशाली हो गए हैं। और समाजवादी समाज दरिद्र समाज होगा। कल जो संपत्तिशाली थे, उनको भी बांट दिया गया है, वे भी धीरे-धीरे दरिद्र हो गए हैं। दो तरह की समानता फलित हो सकती है, एक समानता जो आपस में गरीबी को बांट लेने से उत्पन्न होगी और एक समानता जो संपदा को विकसित करने से उपलब्ध होगी। और आज जो मोह संपत्ति पर इतना दिखाई पड़ता है आदमियों का, एक-एक व्यक्ति का, अपनी संपत्ति पर इतना मोह वह इस कारण नहीं है कि संपदा बहुत कीमती है, वह इस कारण है कि संपदा कम है। संपदा ज्यादा होगी तो वह मोह कम होगा।

     - ओशो 

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