अदृश्य के दृश्य और अज्ञात के ज्ञात होने का उपाय—ध्यान - ओशो
अदृश्य के दृश्य और अज्ञात के ज्ञात होने का उपाय—ध्यान - ओशो
अदृश्य को दृश्य करने का उपाय पूछते हैं? दृश्य पर ध्यान दें। मात्र देखें नहीं, ध्यान दें। अर्थात जब फूल को देखें तो स्वयं का सारा अस्तित्व आंख बन जाए। पक्षियों को सुनें तो सारा तन प्राण कान बन जाए। फूल देखें तो सोचें नहीं। पक्षियों को सुनें तो विचारें नहीं। समग्र चेतना (टोटल कांशसनेस) से देखें या सुनें या सूंघे या स्वाद लें या स्पर्श करें। क्योंकि, संवेदनशीलता (सेंसटिविटी) के उथलेपन के कारण ही अदृश्य दृश्य नहीं हो पाता है और अज्ञात अज्ञात ही रह जाता है। संवेदना को गहरावें। संवेदना में तैरें नहीं, डूबें। इसे ही मैं ध्यान (मेडीटेशन) कहता हूं। और ध्यान में दृश्य भी खो जाता है और अंततः दृश्य होता है और अज्ञात ज्ञात होता है। यही नहीं—अज्ञेय (अननोएबल) भी ज्ञेय हो जाता है। और ध्यान रखें कि जो भी मैं लिख रहा हूं-उसे भी सोचें न, वरन करें। ‘कागज लेखी' से न कभी कुछ हुआ है, न हो ही सकता है। आंखन देखी' के अतिरिक्त कोई और द्वार नहीं है।
- ओशो
No comments