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    तकनीक के विकास ने मानववादी समाज रचना का पहला सूत्र शुरू किया - ओशो

     

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    तकनीक के विकास ने मानववादी समाज रचना का पहला सूत्र शुरू किया  - ओशो 


    समाज में जो इतनी विषमता है, इतना शोषण है, यह शोषण कम किया जा सकता है। यह शोषण अत्यंत कम किया जा सकता है। यह असमानता भी कम की जा सकती है। पहले यह संभव नहीं था, लेकिन टेक्नोलाजी के अदभुत विकास ने इसे संभव बना दिया है। मार्क्स को कभी भी खयाल नहीं था कि सौ वर्षों के भीतर टेक्नोलाजी इतनी विकसित हो जाएगी कि मनुष्य के श्रम का कोई सवाल ही नहीं रह जाएगा। मनुष्य के श्रम का शोषण था पूंजीवाद, और मनुष्य के श्रम का शोषण न हो सके इसलिए समाजवाद की कल्पना विकसित हुई थी, लेकिन टेक्नोलाजी ने मनुष्य को तो विदा कर दिया।

    तकनीक का विकास इस जगह ले आया है कि मनुष्य का श्रम उत्पादन में अनावश्यक हो गया । इसलिए मनुष्य के श्रम का शोषण या मनुष्य के श्रम पर शोषण न हो और समान वितरण हो, दोनों बातें फिजूल हो गई। आने वाले सौ वर्षों में तो हम एक ऐसी दुनिया बना सकते हैं, जहां मनुष्य के श्रम का कोई सवाल न रह जाए। बल्कि हमें जो टेक्नोलाजी से उत्पन्न होगा, जो स्वचालित तकनीक से उत्पादन होगा, उसका हम कैसे वितरण करें इसके हमें नये खयाल सोचने पड़ेंगे। क्योंकि अब तक यह था कि जो मजदूरी करता है उसे कुछ मिले, जो धन लगाता है उसे कुछ मिले, जो व्यवस्था करता है उसे कुछ मिले। लेकिन कल तो इन सबको विदा किया जा सकता है और तकनीक इन सबकी जगह ले सकता है।

    तो जो समाज में उत्पादन हो, उसके वितरण की क्या व्यवस्था हो, वह कैसे डिस्ट्रिब्यूट हो, किस आधार पर ? क्योंकि किसी ने श्रम नहीं किया है बहुत, किसी ने बहुत व्यवस्था नहीं की है या लाखों लोगों का श्रम एक आदमी ने किया है। और धीरे-धीरे विकास ऐसा हो सकता कि उसे एक आदमी को भी हम विदा कर दें और उस एक आदमी की जगह यंत्र-चालित मनुष्य काम को संभाल ले । सौ वर्षों के भीतर तकनीक का विकास उस जगह ले जाएगा, जहां समाजवाद और पूंजीवाद दोनों ही आउट ऑफ डेट हो जाते हों। उन दोनों का कोई सवाल नहीं रह जाता।

    मेरी दृष्टि में तकनीक के इस विकास ने एक मानववादी समाज रचना का पहला सूत्र शुरू कर दिया है। वह यह कि समाज के उत्पादन पर न तो संपत्तिशाली के हक की कोई जरूरत है, न श्रम के मालिक के हक की कोई जरूरत है। समाज का उत्पादन तो तकनीक से हो सकता है, मशीन से हो सकता है । और धीरे-धीरे मशीन मनुष्य को स्थांतरित करती चली जाएगी। यह जो उत्पादन होगा, यह किन आधारों पर वितरित हो ? इसके वितरण का आधार ह्यूमेनिस्ट, इसके वितरण का आधार मानववादी चिंतनीय हो सकता है।

     - ओशो 

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