स्वयं को पाना हो तो दूसरों पर ज्यादा ध्यान मत देना - ओशो
स्वयं को पाना हो तो दूसरों पर ज्यादा ध्यान मत देना - ओशो
फकीर झुगान सुबह होते ही जोर से पुकारता— 'झुगान! झुगान!' सूना होता उसका कक्ष। उसके सिवाय और कोई भी नहीं। सूने कक्ष में स्वयं की ही गूंजती आवाज को वह सुनता— 'झुगान! झुगान!' उसकी आवाज को आसपास के सोए वृक्ष भी सुनते। वृक्ष पर सोए पक्षी भी सुनते। निकट ही सोया सरोवर भी सुनता। और फिर वह स्वयं ही उत्तर देता— 'जी, गुरुदेव! आज्ञा, गुरुदेव!' उसके इस प्रत्युत्तर पर वृक्ष हंसते। पक्षी हंसते। सरोवर हंसता। और फिर वह कहता— 'ईमानदार बनो, झुगान ! स्वयं के प्रति ईमानदार बनो!' वृक्ष भी गंभीर हो जाते। पक्षी भी। और वह कहता ‘जी, गुरुदेव!' और फिर कहता—‘स्वयं को पाना है तो दूसरों पर ज्यादा ध्यान मत देना' वृक्ष भी चौंककर स्वयं का ध्यान करते। पक्षी भी। सरोवर भी। और झुगान कहता— 'जी, हां! जी, हां!' और फिर इस एकालाप के बाद झुगान बाहर निकलता तो वृक्षों से कहता— 'सुना?' पक्षियों से कहता— 'सुना?' सरोवर से कहता—'सुना?' और फिर हंसता। कहकहे लगाता। ___ कहते हैं वृक्षों को, पक्षियों को, सरोवरों को उसके कहकहे अभी भी याद हैं। लेकिन मनुष्यों को? नहीं—मनुष्यों को कुछ भी याद नहीं है। यह मोनो-नाटक (मोनो-ड्रामा) तुम्हारे बड़े काम का है। इसका तुम रोज अभ्यास करना। सुबह उठकर—उठते ही बुलाना जोर से। ध्यान रहे कि धीरे नहीं बुलाना है जोर से। इतने जोर से कि पास-पड़ोस सुने—'......' फिर कहना— 'जी, गुरुदेव!' फिर कहना— 'स्वयं को पाना है तो दूसरों पर ज्यादा ध्यान मत देना।'
और फिर कहना—'जी, हां! जी, हां!' और यह सब इतने जोर से कहना कि तुम्हें ही नहीं, औरों को भी इसका लाभ हो। फिर हंसते हुए बाहर आना। कहकहे लगाना। और हवाओं से पूछना—'सुना?' बादलों से पूछना— 'सुना?'
- ओशो
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